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________________ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) धत्ता -- चंपाहिउ णिग्गउ पुरवरहो हरि करि रहवर परियरिउ । उद्दंड चंड परिवरकहिं भणु केहि न केहि ण अणु सरिउ ॥ ' ३. १४. १-१० कवि ने सैनिकों, घोड़ों, हाथियों और रथों की गति के अनुकूल ही छंद का प्रयोग किया है | छंद की गति से ही सेना के प्रयाण का आभास मिल जाता है । वास्तविक युद्ध आरम्भ होने पर शस्त्र संपात की तीव्र गति और सहसा प्रभाव के साथ ही छंद भी बदल जाता है- ता हयई तराई यज्जति वन्जाई आगाए घडियाई कुताई भज्जति रहण वगंत पूराई । सेन्नाई । भिडियाई । कुंजरई गति । करि दसणे लग्गंति । भुवणयल सज्जति परबलाई गत्ताई तुट्टति मुंडाई डाई भावंति अरि थाणु अंताई गुप्पंति हड्डाई मोति रुहिरेण गीवाई धत्ता - के वि भग्गा कायर जे वि गर के खग्गु ग्गामिय के विभड मंडेविणु संवहंतेण तहो चप्पे गुणु दिण्णु ता गयणे गुण सेव टंकार सद्देण धरणि यलु तखयडिज फुट्ठति । पावंत । थिप्पंति | तोडंति । वि भिडिया के बि पुष्पु । थक्का के वि रजु ॥ २ १८७ ३. १५.१ - ११ युद्ध गत भिन्न-भिन्न क्रियाओं और चेष्टाओं का सजीव चित्र उचित शब्द योजना द्वारा कवि ने पाठकों के सामने प्रस्तुत कर दिया है । करकंड कुद्ध हो अपने धनुष को हाथ में ले लेता है । उसका प्रभाव क्या होता है, कवि वर्णन करता है करे धणु हु किउ तेण । तं पेखि जण खिष्णु । खोहं गया देव । घोरे रउद्देण । तस कुम्मकडडिउ । १. चक्क चिक्कार —— चक्र का शब्द । कुताई--भाले । बावहत्या -- धनुष हाथ में लिये हुए। रोमंच कंचेण - रोमांचित शरीर से । सण्णह--कवच | सग्गिणी - स्वगिणी, सुग्विणी छंद । रहसेण वर्गति -- शीघ्रता से चलते हैं। अंताई गुप्यंति - आंतें स्थान भ्रष्ट हो जाती हैं । भग्गा कायर जे वि गर——कुछ मनुष्य जो कायर थे भाग गये । यक्का-स्थित हुए ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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