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अपभ्रंश-साहित्य
भिन्न कथाओं के प्रयोग द्वारा पूरा करने का प्रयत्न किया है ।
करकंड चरिउ एक धार्मिक काव्य है और अन्य ग्रंथों के समान अनेक अलौकिक और चमत्कार पूर्ण घटनाओं से युक्त है । काव्य प्राचुर्य की अपेक्षा घटना प्राचुर्य ग्रंथ में दृष्टिगत होता है ।
काव्य का चरित नायक पौराणिक पात्र है । पौराणिक, काल्पनिक और अलौकिक घटनाओं के कारण कथानक में संबंध निर्वाह भली भाँति नहीं हो पाया। प्रबंध में कवि का ध्यान यथार्थ की अपेक्षा आदर्श की ओर अधिक है ।
पात्र - कथा में मुख्य पात्र करकंडु है वही कथा का नायक है । इसके अतिरिक्त - करकंडु की माता पद्मावती, मुनि शीलगुप्त, मदनावली, रति वेगा आदि अन्य पात्र भी हैं । इन सब में करकंडु के चरित्र का विकास ही पूर्ण रूप से दिखाई देता है । मुनि शीलगुप्त और पद्मावती का चरित्र भी कुछ अंशों में कवि विकसित कर सका है।
करकंडु धीरोदात्त गुण विशिष्ट बहुपत्नीक नायक है । काव्य में करकंडु की धीरता के दर्शन तो भलीभाँति होते हैं किन्तु उसकी उदात्तता संदिग्ध है । नायक के अन्दर वीरता, स्वाभिमान, उत्साह, मातृ भक्ति आदि गुणों का विकास भलीभाँति दिखाई देता है ।
मुनि शीलगुप्त के चरित्र में भी एक जैन महात्मा के अन्दर पाये जाने वाले सब गुणों के दर्शन हो जाते हैं । पद्मावती के अन्दर पुत्र प्रेम, वात्सल्य और नारीत्व से छुटकारा पाने की प्रवृत्ति दिखाई देती है ।
वर्ण विषय-काव्य में मानव जगत् और प्राकृतिक जगत् दोनों का वर्णन पाया जाता है । मानव हृदय के भावों का चित्रण कवि हृदय ही कर सकता है । अनुभूति और अभिव्यक्ति में यद्यपि समान रूप से तीव्रता नहीं पाई जाती तथापि भावानुभूति की तीव्रता में संदेह नहीं ।
करकंड के दन्तिपुर में प्रवेश करने पर पुर नारियों के हृदय की व्यग्रता का चित्रण कवि ने सुन्दरता से किया है ।
तहि पुरवरि खुहियउ रमणियाउ । झाणट्ठिय मुणिमण दमणियाउ । कवि रहसइं तुरलिय चलिय णारि । विहडप्फउ संठिय का वि वारि । क वि धावइ णव णिव णेह लुद्ध । परिहाणु न गलियउ गणइ मुद्ध । कवि कज्जलु बहलउ अहरे देइ । णयणल्लएं लक्खारसु करेइ | णिग्गंथ वित्ति कवि अणु सरेइ । विवरीउ डिभु क वि कडिहि लेइ । क वि उरु करयलि करइ बाल । सिरु छंडिवि कडियले धरइ माल ।
णिय णंदणु मण्णिवि क वि वराय । मज्जारु ण मेल्लइ साणुराय ।