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अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) पदावली का भी प्रयोग किया है।'
ग्रन्थकार ने अपनी धार्मिक भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए प्राचीन कथाओं और उपाख्यानों का आश्रय लिया है। इन आख्यानों का कवि ने अलंकृत और काव्यमय भाषा में वर्णन किया है। जैसे, ३५ बी और ३६ वीं सन्धियों में कृतिकार ने क्रमशः रामायण और महाभारत युद्ध का वर्णन किया है। इनका प्रसंग यह दिखाने के लिए लाया गया है कि स्त्री में आसक्ति से अनिष्ट उत्पन्न होता है।
कवि मही-महिला का वर्णन करता हुआ उसके मुख-मंडल को अलंकृत करने वाले विधि-निर्मित मगध-मंडल रूपी कुंडल का निर्देश करता है
जलहि वलय चल रसणा दामहे । महि महिलहे महिवइ अहिरामहे । किं वित्थिण्ण घोर थिर महिहर। णं णं तहि सोहहि सुपऊहर । कि सरीर कल्लोलुल्ललियउ। णं णं तहेचल हारावलियउ । किं जल लहरिया उपडिहासिउ। णं णं तहे तिवलिट्टउ हूसिउ। किं परिपक्कं सालि दिहिकारिणी। णं णं तहे पीयल मण हारिणि । कि भंगुर भावइ भमरावलि । णं णं तहि णिडालि अलयावलि । कि सरि सरल मछ मण मोयण। णं णं तह तरलिय मुह लोयण ॥ कि पवणंदोलिय डुम साहउ। णं णं तहे कोमल चल वाहउ । किं पुर वर पएसु संपुण्णउं। णं णं तहि णियंवु वित्थिण्णउं । किं पंडुछु जंतरसु अविरलु । णं णं तहे वियरइ णव रइ जलु । किं कयलिउ पेसल उस लग्घउ । णं णं तम्मि सेणतहे जंघउ । किं मोरहं कलाउ अंदोलइ। णं णं केस पासु तहे घोलइ ।
घत्ता
महि महिलहे मुह मंडणु सहइ। णामें मगहामंडलु ॥ णिम्मलु सुवण्ण सुरयण सहिउ । विहि विहियउ णं कुंडलु ॥
रामायण और महाभारत के युद्ध प्रसंगों में वीररस व्यंजक अनेक वर्णन उपलब्ध होते हैं । इन वर्णनों में कवि ने परंपरानुकूल संयुक्ताक्षरों का प्रयोग किया है । उदाहरणार्थकामललिया।
जाणइ जाय राय मणु रावणु राम सेहिं संगरे। जा जम पट्टणं मिण पवट्टइ तापइ सेह अंतरे ॥
१ स्वभाव नियति काल ईश्वर आत्म कर्तृत्वानि ।
जीवाजीव श्रव संवर निर्जरावंध मोक्ष पुण्य पापानि । स्वतः परतः नित्यानित्याः एतेषां सदृष्टि ४९४००००० अनयनं परस्पर घातेन ॥ १८० उक्तंच ॥