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________________ १६४ अपभ्रंश-साहित्य सूर्यास्त, प्रभात आदि के सुन्दर चित्र कवि ने अंकित किये हैं। निम्नलिखित गंगा नदी के वर्णन में कवि ने नदी की तुलना एक नारी से की है। नदी के प्रफुल्ल कमल नारी के विकसित मुख के समान हैं; भ्रमर समूह अलकपाश के समान, मत्स्य दीर्ष नयनों के समान, मोती दंतावली के समान और प्रतिबिम्बित शशि दर्पण के समान प्रतीत होता है। कूलवृक्षों की शाखा रूप बाहुओं से नाचती हुई, इतस्ततः प्रक्षलन से त्रिभंगियों को प्रकट करती हुई, सुन्दर चक्रवाक रूप स्तनवाली, गंभीर आवर्त रूप नाभि वाली, फेन समूह रूप शुभ्र हार वाली, तरंग रूप त्रिवली से शोभित, नील कमल रूप नीलांचल धारण करती हुई, जलविक्षोभ रूप रशनादाम से युक्त नदी वेश्या के समान लीला से और मंथरगति से सागर की ओर जा रही है। घत्ता सुंदर पय लक्खण संगय, विमल पसण्ण सुकइहे सुहावह । णावइ तिय सहइ सइंत्तिय, णइ अहवा सुकहे कहा ॥ २.११. पफ्फुल्ल कमलवत्तें हसंति, अलि वलय घुलिय अलयई सहति । दीहर झसणयहिं मणुहरंति, सिप्पिउ डुट्ठ वहि दिहि जणंति । मोत्तिय दंतावलि दरिसयंति, पडिविविउ ससि दप्पणु णियंति । तड विडविसाह वाहहिं णडंति, पक्खवलण तिभंगिउ पायडंति । वर चक्कवाय थणहर णवंति, गंभीरणीर भम णाहि वंति । फेणोह तार हार व्वहंति, उम्मि विसेस तिवलिउ सहति । सय दल णोलंचल सोह दिति, जल खलह रसण्णा दामुलिति । मंथर गइ लीलए संचरंति, वेसाइ व सायरु अणुसरंति।' सु. च. २. १२ निम्नलिखित वसन्त वर्णन में कवि ने ऋतु के अनुकूल मधुर और सरस पदों की योजना की है। प्रारम्भिक वंशस्थ में तो प्रमरों का गुंजन सुनाई देता है । वसन्त में गेय 'चच्चरि' का भी कवि ने निर्देश किया है। पत्ता दूर यर पियाहं, पहियहं मण संतावणु। तहि अवसरे पत्तु, मासु वसंतु सुहावणु ॥ ७.४ वंसत्य . सुयंधु मंदो मलयद्दिमारुऊ, वसंत रायस्स पुराणु सारऊ। जणंतु खोहं हियए वियंभए, समाणिणी णं अणुमाणु सुभए। १. पयलक्खण-नदी पक्ष में जलयुक्त, स्त्रीपक्ष में पदन्यास से शोभित, कथा पक्ष में सुन्दर पदों से युक्त। तड विडवि साह--तट विटपि शाखा । रसण्णा दामु--रशना दाम।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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