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________________ १५७ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) १५७ भमिए तमंधयार वर यच्छिए दिण्णउ दीवउ णं णह लच्छिए। ८.१४ चन्द्रोदय पर कवि कल्पना करता है कि चन्द्र मानों घनान्धकार में नभश्री के लिए दीपक के समान था। इसी प्रकार ऊपर दिये हुए वसन्त वर्णन में यमक के सुन्दर उदाहरण मिलते हैं वियसिय कुसमु जाउ अइमत्तउ , घुम्मइ कामिणीयणु अइमत्तउ । मंदमंद मलयानलु वाइय, महुर सद्द, जणु वल्लइ वायइ। ३. १२ भ्रान्ति का उदाहरण निम्नलिखित पंक्तियों में मिलता है जाल गवक्खय पसरिय लालउ गोरस भंतिए लिहए विडालउ।। ८. १२ मवाक्ष जाल से आती हुई ज्योत्स्ना को विडाल दुग्ध समझ कर चाट रहा था। गेण्हह समरि पडिउ वेरी हलु मण्णेविण करि सिर मुत्तहलु।। ८.१४ शबरी आगे पड़े बेर को सिर का मोती समझ कर उठा रही है। सुभाषित-कृति में सुभाषित और लोकोक्तियों का प्रयोग भी कवि ने किया है। कच्चे पल्लवइ को रयण, पित्तलइ हेम विक्कइ कवणु। २. १८ काँच से रत्न को कौन बदलेगा ? पीतल से सोने को कौन बेचेगा? . छन्दकृति में पज्झट्टिका, घत्ता, दुवई, दोहा, गाथा, वस्तु, खंडयं आदि मात्रिक छन्दों का और स्रग्विणी, शिखरिणी, भुजंग प्रयात आदि वर्ण वृत्तों का प्रयोग हुआ है। गाथाओं की भाषा निःसन्देह प्राकृत से प्रभावित है। सुदंसण चरिउ--सुदर्शन चरित्र यह ग्रंथ अप्रकाशित है। इसकी तीन हस्तलिखित प्रतियाँ आमेर शास्त्र भंडार जयपुर में वर्तमान हैं (प्रं० सं० पृष्ठ १८७-१९०)। एक हस्तलिखित प्रति प्रो० हीरालाल जैन के पास उपलब्ध है। बारह संधियों में रचित इस काव्य का कर्ता नयनंदी है। सन्धियों में कड़वकों की कोई निश्चित संख्या नहीं। ५वीं, १०वीं और १२वीं सन्धियों में दस-दस कड़वक हैं और ८वीं सन्धि में चवालीस । प्रत्येक सन्धि के अन्तिम घत्ता में कवि का नाम निर्दिष्ट है । नयनंदी अपभ्रंश के एक उत्कृष्ट कवि और प्रकाण्ड पण्डित थे। इस ग्रंथ के अतिरिक्त कवि ने 'सकल विधि निधान काव्य' की भी रचना की। कवि माणिक्य नंदी का शिष्य था । कवि ने 'सुदंसणचरिउ' की रचना वि० सं० ११००
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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