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________________ अपभ्रंश- खंडकाव्य (धार्मिक) से हैं । १ कवि ने शरीर की क्षणभंगुरता, असारता का दिग्दर्शन करते हुए पापाचरण से रहित अहिंसामय विचार से पूर्ण हो धर्माचरण का आदेश दिया है। कवि हिंसकों के प्रति व्यंग्य से कहता है धत्ता - पसु णासइ जहिं हिंसइ परमधम्मु उप्पज्जइ । ता बहुगुणि मोल्लिवि मुणि पारद्धिउ पर्णावज्जइ ॥ १४७ ( २. १७. १०-११ ) यदि पशु नाश और हिंसा से ही परम धर्म प्राप्त हो सकता हो तो बहुगुणी मुनि को छोड़ कर एक शिकारी की ही पूजा करो । मांसाहारियों के विषय में कवि कहता है दुवई - मीणु गिलंतु हंतु जइ सुज्झइ ता कंको महा मुणी । दिज्जइ चरंतु इतरि कि किज्जइ परो मुणी ॥ ( ३. २०. १-२ ) की जा सकती है अर्थात् यदि मछली निगलने और स्नान करने से ही शुद्धि प्राप्त . तो कंक से बढ़कर और कौन मुनि होगा ? नदी तीर पर विचरण करने वाले कंक की ही वन्दना करो किसी दूसरे मुनि से क्या काम ? शरीर की नश्वरता का प्रतिपादन कितनी सुन्दरता से कवि ने किया है-दुवई - तणु लायण्णु वण्णु णव जोवण्णु रूव विलास संपया । सुरधणु मेह जाल जल बुब्बुय सारिसा कस्स सासया ॥ सिसुतणु णासइ णवजोव्वणेण जोव्वणु णासइ वुड्ढत्तणेण । बत्तणु पाणि चलियएण पाणु वि खंधोहिं गलियएन । ( ४. १०. १-४ ) जंबुसामि चरिउ यह ग्रंथ अप्रकाशित है । इसकी हस्तलिखित प्रति आमेर शास्त्र भंडार में वर्तमान है । १. छिवइ - - स्पृश्, छूना (१. ३. १७), टोप्पी -- टोपी (१.६. ४), बइसाविवि -- बिठा कर (१. ६. २४), तुरंतु तुरंत (१. ६. २४), अवस होसइ - अवश्य होगा (१.७.१५), जिम्मइ - - जीमना, खाना (१.२१.८), चंगउ -- पंजाबी चंगा, सुन्दर (१.२१. १०), सेहरु - सेहरा ( १, २६. १४), धणु लट्ठि -- धनुष्ठि ( २. ९.४), सडइ - - नष्ट होना- पंजाबी ( २. ११.१२ ), रसोइ ( २. २३. ११) लड्डुय -- लड्डू ( २. २४.६ ), पच्छइ -- पीछे (२. २६. २), साडी -- साड़ी ( ३. १. ४ ), सिप्पि -- सीप (३.१.७), फट्टाई णिवसणाई -- फटे वस्त्र, फुट्टाई भायगई--फूटे बर्तन ( ३.२७.१० )
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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