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अपभ्रंश-साहित्य
संस्कृत में वर्णित किया है। वादिराज कृत यशोधरा चरित्र, सोमदेव कृत यशस्तिलक चम्पू, माणिक्य-सूरि कृत यशोधर चरित सब में यशोधर की कथा का ही वर्णन मिलता है। कयानक
जसहर चरिउ की कथा इस प्रकार है
मारिदत्त नामक राजा ने भैरवानन्द नामक कापाटिकाचार्य से दिव्यशक्ति देने की प्रार्थना की । भैरवाचार्य ने एतदर्थ राजा को सब प्राणियों के जोड़ों की बलि देकर देवी चंडमारी की पूजा करने को कहा। सब प्राणियों के जोड़े मिल गये किन्तु मनुष्य का जोड़ा न मिलने पर राजकर्मचारी, सुदत्त नामक जैन-भिक्षु के अभय रुचि और अभयमति नामक क्षुल्लक श्रेणी के दो शिष्यों को पकड़ कर देवी के मंदिर में ले गये । राजा उन्हें देख बहुत प्रभावित हुआ और पूछने लगा कि इस छोटी सी अवस्था में ही कैसे तपस्वी हो गये । क्षुल्लक बालक बोला.. जन्मान्तर में उज्जयिनी में यशोह नामक राजा और चन्द्रमति रानी के यशोधर नामक पुत्र था। युवावस्था में अमृतमति नामक राजकुमारी से विवाह कर, पिता के विरक्त हो जाने पर, वह राज्य करने लगा (१)।
यशोधर भोग विलासमय जीवन व्यतीत करता था। एक रात अपनी रानी के दुराचरण के दृश्य से विक्षुब्ध हो उसने राजगद्दी छोड़ विरक्त होना चाहा । उसने अपनी माता से कहा-मैंने रात को एक दुःस्वप्न देखा है या तो मुझे एकदम भिक्षु हो जाना चाहिए या मैं मर जाऊँगा । माता ने दुःस्वप्न के प्रभाव को दूर करने के लिए देवी को पशु बलि देने का प्रस्ताव किया। राजा के विरोध करने पर पशु बलि के बदले आटे के बने मुर्गे की बलि दी गई। किन्तु राजा का चित्त शान्त न हुआ, उसने वनवास का निश्चय किया। वन में जाने से पूर्व उसकी रानी अमृतमति ने धोखे से उसको और उसकी माता को विष देकर मार दिया । यशोधर के पुत्र जसवई ने शोकातुर हो अपने पिता और दादी का राजमर्यादोचित विभूति के साथ संस्कार किया ताकि भविष्य में उनका मंगल हो । किन्तु एक कृत्रिम मुर्गे की बलि के कारण आने वाले जन्म में राजा यशोधर एक मोर के रूप में और उसकी माता एक कुत्ते के रूप में उत्पन्न हुई। उसके बाद दूसरे जन्म में वे क्रमशः नकुल और सर्प के रूप में उत्पन्न हुए (२) । जन्मान्तर में वे क्रमशः मगरमच्छ और मछली, बकरा और बकरी, मुर्गा और मुर्गी रूपों में उत्पन्न हुए । अन्त में राजा द्वारा मारे जाने पर उसके पुत्र पुत्री के जोड़े के रूप में उत्पन्न हुए। जोड़े में से पुत्र का नाम अभयरुचि और पुत्री का नाम अभयमति हुआ। कालान्तर में जसवई सुदत्त नामक जन भिक्षु से प्रभावित हो विरक्त हो गया। उसने भिक्षु से अपने पिता, माता तथा दादी के विषय में प्रश्न किया । भिक्षु ने उनके अनेक जन्मों का विवरण देते हुए बताया कि अभयरुचि और अभयमति उसके पूर्व जन्म के पिता और दादी हैं उसकी माता पांचवें नरक में है (३)।
यह सब सुनकर राजा जसवई ने भिक्षु बनना चाहा। अभयरुचि और अभयमति ने भी यही विचार प्रकट किया किन्तु अवस्था में कम होने के कारण सुदत्त ने उन्हें