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________________ अपभ्रंश-साहित्य नाग कुमार की छावनी में गड़े तम्बू ऐसे प्रतीत होते थे जैसे मुण्डित दासियां स्थित हों। नागकुमार लक्ष्मीमती को इस प्रकार चाहता जैसे भिखारी ब्राह्मण संक्रान्ति को (९. २. ६)। नागकुमार इसी प्रकार लक्ष्मीमती-प्रिय था जिस प्रकार वैयाकरण निरुक्तिप्रिय होता है (९. २. ९)। ___ इसी प्रकार यमक (१. १०), व्यतिरेक (१. ४) आदि का भी कवि ने सुन्दरता से प्रयोग किया है। शब्दों की आवृत्ति द्वारा क्रिया के पौनःपुन्य को दिखाते हुए भाषा को बलवती बनाने का प्रयत्न निम्नलिखित उद्धरण में दिखाई देता है ता दक्खालिउ मद्धहे जरवर गं कामें घणु गुण संविय सर। पिय विरहें मणु दुक्खइ दुक्खइ सुठ्ठ मुहुल्लउ सुक्कइ सुक्कइ। अंग अणंगें तप्पइ तप्पइ दंसणे रइजलु छिप्पइ छिप्पइ। कवि की प्रसाद गुण युक्त रचना का उदाहरण निम्निलिखित उद्धरण में देखा जा सकता है सोहइ जलहरु सुरधणु छायए सोहइ णरवरु सच्चए बायए। सोहइ कइयणु कहए सुबद्धए सोहइ साहउ विज्जए सिद्धए। सोहइ मुणि वरिंदु मणसुद्धिए सोहइ महिवइ णिम्मल बुद्धिए। सोहइ मंति मंत विहि विट्ठिए सोहइ किंकरु असिन्वर लट्ठिए। सोहइ पाउसु सास समिद्धिए सोहइ विहउ सपरियण रिद्धिए। सोहइ माणुसु गुण संपत्तिए सोहइ कज्जारंभु समत्तिए। सोहइ महिलहु कुसुमिय साहए सोहइ सुहडु सुपोरिस राहए। सोहइ माहउ उरयल लच्छिए सोहइ वरु बहुयए धवलच्छिए। सामाजिक अवस्था-नाग कुमार के अध्ययन से तत्कालीन राजाओं के जीवन और रहन-सहन पर अच्छा प्रकाश पड़ता है । राजा बहु-पत्नीक होते थे। जयन्धर ने विशाल नेत्रा के होते हुए भी पृथ्वी देवी से विवाह कर लिया था, यद्यपि उसका श्रीधर नामक पुत्र भी वर्तमान था। रानियों में ईर्ष्या स्वाभाविक होती ही थी। विवाह के समय लड़की ऊँचे घराने की ही हो ऐसा विचार राजकुमार न करते थे। अकुलीन कुल से भी लड़की को लेने में दोष न समझा जाता था । णाय कुमार का प्रथम विवाह दो नतंकियों से हुआ और णाय कुमार के पिता ने स्वयं इसकी अनुमति दी थी और कहा था"अकुलीणु वि थीरयण लइज्जइ" ३.७.८ क्षत्रियों-राजाओं में संभवतः मामा की लड़की से विवाह दोषयुक्त न माना जाता था । णाय कुमार के मामा ने अपनी लड़की का अपने भगिनी पुत्र के साय विवाह करने का संकल्प किया था (७. ४. ५.) । इसी प्रकार प्रतीत होता है कि राजाओं में विवाह के
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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