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________________ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) १३३ का (१. ८. १-७) भी निर्देश किया है। इससे कवि के (कामन्दकीय) नीति सार, (कौटिल्यीय) अर्थशास्त्र आदि नीति ग्रंथों के अध्ययन का अनुमान किया जा सकता है । कहीं कहीं श्लेष और उपमा में कवि ने राशि, नक्षत्र, ग्रह आदि का (३. १७. १२) प्रयोग किया है । इससे प्रतीत होता है कि कवि ने ज्योतिष शास्त्र का भी अध्ययन किया था। पात्र--नागकुमार, नागकुमार का पिता जयन्धर, उसकी माता पृथ्वीदेवी विमाता विशाल नेत्रा, सौतेला भाई श्रीधर, मुनि पिहिताश्रव और लक्ष्मीमती ही इस काव्य में मुख्य पात्र हैं। कथा का नायक नागकुमार है। नायक बहुपत्नीक है। अनेक पत्नियां में से लक्ष्मीमती के साथ अधिक अनुरक्त है। नागकुमार का सौतेला भाई श्रीधर प्रतिनायक है। ___ इन सब पात्रों में नागकुमार का चरित्र ही कवि ने भलीभाँति चित्रित किया है। अन्य पात्रों के चरित्र चित्रण की ओर कवि ने ध्यान नहीं दिया। कवि ने नागकुमार में धीरता, मातृभक्ति, शौर्य, साहस आदि गणों की व्यंजना सन्दरता से की है। प्रतिनायक श्रीवर के चरित्र का विकास नहीं दिखाई देता। यदि श्रीधर को सौतेले भाई में पाई जाने वाली ईर्ष्या से अभिभूत, यौवराज्य पद की प्राप्ति का अधिकारी, एक बलवान् प्रतिपक्षी दिखाया जाता तो श्रीधर के चरित्र-विकास के साथ-साथ नागकुमार का चरित्र भी अधिक उज्ज्वल और स्वाभाविक हो जाता। मुनि पिहिताश्रव के चरित्र में भी किसी प्रकार का विकास नहीं । यदि मुनि के उपदेश के प्रभाव से नाग कुमार के चरित्र की दिशा परिवर्तित होती तो सम्भवतः मुनि प्रिहिताश्रव के चरित्र का महत्त्व होता किन्तु कवि ने नागकुमार के पूर्व जन्म की धार्मिक भावना को ही उसके उच्च जीवन का कारण बताकर मुनि के चरित्र-विकास का अवकाश ही नहीं रखा। ___ रस--कवि ने ग्रंथ में नागकुमार के सौन्दर्य और पराक्रम का सुन्दर दिग्दर्शन कराया है। कवि ने नागकुमार का चरित्र अंकित करते हुए उसमें जिन गुणों का महत्व दिखाया है, उन सब का कारण नागकुमार की धार्मिक भावना ही है। पूर्व जन्म में श्री पंचमीव्रत के अनुष्ठान के कारण नागकुमार को देवत्व प्राप्ति होती है। नागकुमार को कवि ने वीर रस का आश्रय दिखाया है। यह वीर रस शृंगार से परिपुष्ट है। नागकुमार के सौन्दर्य और शौर्य को देख कर मोहित हुई हुई स्त्रियों के हृदय की उद्विग्नता का कवि ने सुन्दर वर्णन किया है। अनेक सुन्दरियाँ भी उसके सामने आत्म-समर्पण कर शेती हैं। नागकुमार के शौर्य से उद्भूत नारी हृदय के प्रेम की व्यंजना कवि ने स्थानस्थान पर की है । ऐसे स्थलों पर शृंगार रस वीर रस को समृद्ध करता है। काव्य में अनेक स्थलों पर नारी का मनोहर वर्णन किया गया है। - युद्ध का वर्णन ४.९ में मिलता है। युद्ध यात्रा के वर्णन (७. ५) में छंद की गति और शब्द-योजना द्वारा नाद सौंदर्य को उत्पन्न कर वीरता की व्यंजना की गई है। वर्णन में ध्वन्यात्मक शब्दों के प्रयोग से सौंदर्य और भी बढ़ गया है। सेना के
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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