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अपभ्रंश - खंडकाव्य (धार्मिक)
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नाग कुमार को अनेक विद्याएँ और कलायें सिखाई जाती हैं। धीरे-धीरे नाग कुमार युवावस्था में प्रवेश करता है । उसके सौंदर्य से ऐसा प्रतीत होता है मानो साक्षात् काम देव हो
पेक्as जहि जहि जे जणु तह तह जि सुलक्खण भरियउ ।
ares काई कइ जगे वम्महु सई अवयरियउ ॥
३.४.१६
कालान्तर में नागकुमार किन्नरी और मनोहरी नामक पंचसुगन्धिनी की कन्याओं से विवाह कर लेता है । एक दिन नाग कुमार अपनी स्त्रियों के साथ एक सरोवर पर जलक्रीड़ा के लिए जाता है । उसकी माता स्नानानन्तर पहिरने के कपड़े देने के लिए जाती है । उसकी सपत्नी विशालनेत्रा अवसर पाकर राजा का मन भर देती है - देखो तुम्हारी प्यारी स्त्री अपने प्रियतम के पास जा रही है। राजा उसका पीछा करता है और उसे पता चलता है कि यह सब विशालनेत्रा का प्रपंच है और उसे व्यर्थ दोषारोपण के लिए sir ser है । किन्तु साथ ही पृथ्वी देवी को आदेश देता है कि अपने पुत्र के साथ बाहर घूमने फिरने न निकले । रानी इसे अपमान समझती हैं और प्रतीकार भावना से प्रेरित हो अपने पुत्र को राजधानी के चारों ओर हाथी पर सवार कर घुमाती है । राजा रानी के इस अनादर-सूचक व्यवहार से उसके सारे गहने छीन कर उसे दंडित करता है । नाग कुमार को यह बहुत बुरा लगता है और वह द्यूतक्रीड़ा में जीते अनेक सुवर्णालंकारों और रत्नों से उसे भूषित करता है । उसकी द्यूत चातुरी का पता लगने पर राजा भी उससे जूआ खेलना चाहता है । नागकुमार राजा को भी हरा देता है और उसका सब धन इत्यादि जीत लेता है । किन्तु पीछे से वह सब कुछ अपने पिता htौटा देता है और अपनी माता को पूर्ववत् स्वतंत्र करा लेता है ।
एक दिन नागकुमार एक उद्धत घोड़े को अपने वश में कर लेता है । श्रीधर उसके बलपराक्रम को देखकर अपने यौवराज्य की इच्छा छोड़कर उससे ईर्ष्या करने लगता है । एक दिन अतीव उद्धत और बली हाथी को वश में करके नागकुमार सबको आश्चर्य - चकित कर देता है (३) ।
श्रीधर नागकुमार को मारने का फिर भी प्रयत्न करता है किन्तु सफल नहीं हो पाता ।
चौथी संधि से लेकर आठवीं संधि तक नागकुमार के अनेक वीर कर्मों और चमत्कारों का वर्णन है । वह अनेक राजकुमारियों को दूसरे राजाओं के बन्धन से मुक्त कराता है । अनेक राजकुमारियों का उद्धार करता है और अनेक के साथ विवाह करता है । अनेक राजाओं को युद्ध में पराजित करता है ।
अन्तिम संधि में नागकुमार राज कुमारी मदनमंजूषा से विवाह करता है । विजयंघर लड़की राजकुमारी लक्ष्मीमती से भी विवाह होता है । इसके साथ नागकुमार का प्रगाढ़ स्नेह था । मुनि पिहिताश्रव अनेक दार्शनिक सिद्धान्तों और धार्मिक उपदेशों का पान करते हैं । अन्त में नागकुमार मुनि से लक्ष्मीमती के साथ निज प्रगाढ प्रेम का कारण पूछते हैं। मुनि इस प्रसंग में नागकुमार के पूर्व जन्म की कथा बताते हैं और इसी