________________
११८
अपभ्रंश-साहित्य भो रंधू पंडिय गुणणिहाण पोमावइ वर वंसहं पहाण । सिरि पाल्ह वाह अयरियसीस, महुवयणु सुणहि भो बुहगिरीस ॥ सोढल निमित्त नेमिहु पुराणु, विरयउ जहं पइ जण विहिय माणु। तह राम चरितु विमा भणेहि, लक्खण समेउ इउ मणि मुहि ॥
प. च. १.४ रयधू काव्य रचना में अपने को असमर्थ पाते हैं किन्तु हरसीहु साहु उन्हें प्रोत्साहित करता है।
तुहुं करव पुरंधर बोस हारि, सस्थत्व कुसल बहु विणय धारि । करि कन्वु चित परिहरहि मित्त, तुह मुहि णिवसइ सरसइ पवित्त ।
इसके बाद जब द्वीप, भरत क्षेत्र, मगम देश, राजगृह, सोणिक राजा, रानी चेल्लणा, सब का एक ही कड़वक (१.६) में निर्देशमात्र कर दिया गया है। ____ कथा का आरम्भ गौतम श्रेणिक की आशंकाओं से होता है। इंद्रभूति उसके उत्तर में कथा कहते हैं
जइ रामहु तिहुवणि ईसरत्तु, रावणेण हरिउ कि तह कलत्तु । वणयर पन्वउ किं उद्धरंति, रयणयरु वंधिवि किं तरंति ।
छम्मास मिद्द किं गउ मरेइ, कुंभयण पुणुवि किं जायरेइ ।
प. च. १८ काव्य में घटनाओं को चलता करने का प्रयत्न दिखाई देता है । देखिये एक ही वाक्य में कीत्ति धवल की रानी लक्ष्मी का वर्णन कर दिया गया है
कित्ति धबलु लंका पुरि राणउ। तासु लच्छिणामें प्रिय सुन्दरि, चंद वयणि गइ णिज्जय सिंधुर ।
१.१०
इसी प्रकार निम्नलिखित ग्रीष्मकाल का वर्णन भी अत्यन्त संक्षिप्त है
पुणु उणह कालि पन्वय सिरेहि, खर किरण करावलि तप्पिरेहि। सिरि रागम चउपहिं झाण लोण, अहणिसु तव ता. गत खीषु ।
२.१८
इसी प्रकार ७. ८-१० में भी राम-रावण युद्ध सामान्य कोटि का वर्णन है।
पांडव पुराण यह ग्रंथ भी अभी तक प्रकाशित नहीं हो सका । इसकी तीन हरतलिखित प्रतियां आमेर शास्त्र भंडार में और एक प्रति देहली के पंचायती मंदिर में विद्यमान है। ____ इस ग्रंथ के रचयिता यशः कीति हैं। इन्होंने पांडव पुराण के अतिरिक्त हरिवंश पुराण की भी रचना की । यशः कीति का लिखा हुआ चन्द्रप्रभ चरित नामक खंडकाव्य