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________________ अपभ्रंश महाकाव्य ११७ धू' कवि ने इस ग्रन्थ द्वारा ग्यारह सन्धियों एवं २६५ कड़वकों में जैन मतानुकूल राम कथा का वर्णन किया है । सन्धियों में कड़वकों की कोई निश्चित संख्या नहीं। नवीं सन्धि में नौ और पाँचवीं सन्धि में उनतालीस कड़वक पाये जाते हैं । कृति की पुष्पिकाओं में ग्रंथ का नाम बलभद्र पुराण भी मिलता है । कृति कवि ने हरिसिंह साहु की प्रेरणा से लिखी थी और उसी को समर्पित की गई है । प्रत्येक सन्धि की पुष्पिका में उसके नाम का उल्लेख है । सन्धियों के प्रारम्भ में संस्कृत पद्यों द्वारा हरिसिंह की प्रशंसा और उसके मंगल की कामना की गई है। 3 ४ कृति में गोव्वगिरि गढ़ ( गोपाचल गिरि) और राजा डूंगरेन्द्र के राज्यकाल का निर्देश है । कवि द्वारा लिखित सुकौशल चरित नामक ग्रंथ में बलभद्र पुराण का उल्लेख मिलता है । अतः इस काव्य की रचना उक्त कृति के रचना काल (वि.सं. १४९६ ) से पूर्व ही हुई होगी, ऐसी कल्पना की जा सकती है । ग्रंथ का आरम्भ निम्नलिखित पद्य से होता है- ॐ नमः सिद्धेभ्यः । परणय विद्वंसणु, मुणिसुव्वय जिणु, पर्णाविवि वहु गुणगण भरिउ | सिरि रामहो केरउ, सुक्ख जणेरउ, सह लक्खण पयडमि चरिउ ॥ इसके बाद जिन स्तवन किया गया है । तदनन्तर कवि से ग्रन्थ रचना की प्रार्थना की जाती है । १. रइधू के परिचय के लिए सातवां अध्याय देखिए । २. इस वलहद्द पुराणे, बुहियग विदेहि लद्ध सम्माणे, सिरि पंडिय रहधू विरइए, पाइय वंधेण अथ विहि सहिए सिरि हरसीह साहुकंठि कंठाभरणे, उहयलोयसुह सिद्धिकरणे इत्यादि ३. यः सर्व्वदा जिनपदांव जयो सत्पात्रदान निपुणो मदमान दाता क्षतो हि सततं हरसीह नाम श्री कर्मसीह सहितो जयतात्स दात्रा (ता ) ॥ द्विरेफः हीनः । सन्धि ३. ४. गोव्वग्गिरि णामें गढ़ पहाणु, णं विहिणाणिम्मिउ रयण ठाणु । अइ उच्च धवलु नं हिमगिरिदु, जह जम्मू समिछइ मणि सुरिं । तहि डुंगरेदु णामेण राउ, अरिगण सिरग्गि संन्दिन्नघाउ । १. २ ५. बलहद्दहु पुराण पुणु तीयउ । नियमण अणुराएँ पई कीयउ । सुकौशल चरित १ २२ सुकौशल चरित के लिए सातवां अध्याय देखिए ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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