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अपभ्रंश महाकाव्य
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इसके पश्चात् कवि मंगलाचार के रूप में २४ तीर्थंकरों का स्तवन करता है । वह क्षणभंगुर शरीर की नश्वरता का वर्णन करता हुआ स्थायी अविनाशी काव्यमय शरीर रचना का विचार करता है
धत्ता-- जो गवि मरइ ण छिज्जइ गवि पीडिज्जइ, अक्ख भुवणि अँ भीरुवि । करमि सुयण संभावउ, क्खल सतावउ, हउ कव्वमउ सरोरुवि ॥१.२
१. ४ में कवि ने हरिवंश पुराण को नाना पुष्प - फलों से अलंकृत और बद्धमूल महारु कहा है । इसी प्रसंग में कवि ने आत्मविनय प्रदर्शित किया है । सज्जन दुर्जन स्मरण और आत्मविनय के पश्चात् कथा आरम्भ होती है ।
हरिवंश पुराण की कथा का रूप वही ही है जो कि स्वयंभू इत्यादि प्राचीन कवियों के काव्यों में मिलता है । स्थान-स्थान पर अलंकृत और सुन्दर भाषा में अनेक काव्यमय वर्णन उपलब्ध होते हैं ।
राजा सिद्धार्थ का वर्णन करता हुआ कवि कहता है
घता -- बहु धणु बहु गुणु बहु सिय जुत्तउ, तहि णिवसइ जिण कमलव्व रुत्तउ । free पसाहिय तह पर णारिउ, णं सुर लोड महिहि अवयरिउ २. १. निम्नलिखित रानी का वर्णन परंपरागत उपमानों से अलंकृत है
घृण कसण केस दोहरणयणा, सुललिय तणु सुअकर सरिवयणा ।
णं सिय णव जुव्वण घण थणा, कलहंस गमन कोमल चलणा ॥ २.३. भौगोलिक वर्णन प्रायः सामान्य कोटि के हैं । कवि कौशाम्बी नगरी का वर्णन करता है-
मंदिर ।
दीवहो ।
जण घण कंत्रण रयण समिद्धी, कउसंवी पुरि भुषण पसिद्धी । तहि उज्जाण सुघण सुमणोहर, कमलिणि संडिहि णाई महासर । बाविउ देवल तुंग महाघर, मणि मंडिय णं देवह खाइय वेढिय पासु पयारहो, लवणोवहि णं जंबू तह जणु वहुगुण सिय संपुष्णउ, भूसिउ वर भूर्णाहं कुसुम वत्थ तंबोलहि सुंदर, उज्जल वंस असेस वि ण णारिउ सुहेण णिच्चंतई, णिय भवणिहि वसंति विलसंतई ॥ १७. १ वर्णनों में एकरूपता होते हुए भी नवीनता दिखाई देती है । कवि, सुमुख ( सुमुहु) नामक राजा का वर्णन करता है—
रवण्णउं ।
तह गर ।
कि ससहउ णं णं सकलंकउ, किच कमलु णं णं कंटालउ, कि अगंगु तं अंग विहूणउं, कि रयणाद णं णं खारउ,
झीण सरीर होइ पुणु बंकर । किं खगवइ णं णं परवालउ । कि सुरवइ णं णं बहु णयणउं । कि जलहरु णं णं अधारउ । १७. २
कवि ने राजा की प्रशंसा में परंपरागत उपमानों को उसके अयोग्य बताया है ।