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मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं.
मान्यो तेम पामर प्राणीओ संसार स्वमाना सुखसमुदायमा आनंद माने छे. जेम ते सुख समुदाय जागृतिमां मिथ्या जणाया तेम ज्ञान प्राप्त थतां संसारनां सुख तेव जणाय छे. स्वमाना भोग न भोगव्या छतां जेम भीखारीने खेइनी प्राप्ति थइ, तेम मोहांध प्राणीओ संसारनां सुख मानी बेसे छे, अने भोगव्या सम गणे छे. परंतु परिणाम खेद, दुर्गति अने पश्चाताप ले छे ते चपळ अने विनाशी छतां स्वमाना खेद जेवू तेनुं परिणाम रहुं छे. ए उपरथी बुद्धिमान पुरुषो आत्महितने शोधे छे. संसारनी अनित्यतापर एक काव्य छे के:
उपजाति. विद्युतलक्ष्मी प्रभुता पतंग, आयुष्य तेतो जळना तरंग पुरंदरी चाप अनंगरंग, शुं राचिये त्यां क्षणनो प्रसंग ! विशेषार्थः-लक्ष्मी विजठी जेवी छे. विजळीनी झबकार जेम थइने ओलवाइ जाय छे ते लक्ष्मी आवीने च ली जाय छे. अधिकार पतंगना रंग जेवो छ, पतंगनो रंग जेम चार दिवसनी चटकी छे तेम अधिकार मात्र थोडो काळ रही हाथमाथी जतो रहे छे. आयुष्य पाणीना मोजां जेवू छे. पाणीनो हिलोळो आव्यो के गयो तेम जन्म पाम्या अने एक देहमा रह्या के न रह्या त्यां बीजा देहमां पडवू पडे छे. कामभोग आकाशमा उत्पन्न थतां इंद्रनां धनुष्य वर्षाकाळमां थइने क्षणवारमा लय थई जाय छे, तेम योवनमां कामना विकार फळीभूत थई जरा वयमां जता रहे छे. टुंकामां हे जीव ! ए सघळी वस्तुओनो संबंध क्षणभर छे, एमां प्रेमबंधननी सांकळे बंधाईने शु राचवू ? तात्पर्य ए सघळां चपळ अने विनाशी छे, तुं अखंड अने अविनाशी छे, भाटे तारा जेवी नित्य वस्तुने प्राप्त करे ! ए बोध यथार्थ छे.