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________________ मोक्षमाळा - पुस्तक बीजं. जे वडे करीने मोक्षना मार्गनी लाभदायक भाव उपजे ते सामायिक. आर्त्त, अने रौद्र ए वे प्रकारनां ध्याननो त्याग करीने मन, वचन, कायाना पापभावने रो हीने विवेकी मनुष्यो सामायिक करे छे. ५४ मनना पुद्गल तरंगी सामायिकमां ज्यारे विशुद्ध परिणामथी रहेतुं योग्य छे त्यारे पण ए मन आकाश पातालना घाट घड्या करे छे तेमज भूल, विस्मृति, उन्माद इत्यादिथी वचनकायामां पण दूषण आववाधी सामायिकमां दोष लागे छे. मन, वचन अने कायाना थईने बत्रीश दोष उत्पन्न थाय छे. दश मनना, दश वचनना अने बार कामना एम बत्रीश दोष जाणवा अवइयना छे. जे जाणवाथी मन सावधान राखी शकाय. मनना दश दोष कहुं एं. १ अविवेवकदोष- सामायिकनुं स्वरुप नहि जाणवाथी मनमां एवो विचार करे के आथी गुं फळ थवानुं हतुं ? आधी ते कोण तर्यु हशे ? एवा विकल्पनुं नाम अविवेकदोष. २ यशोवांच्छादोष- पोने सामायिक करे छे एम बीजा मनुष्यो जाणे तो प्रशंसा करे एवी इच्छाए सामायिक करवुं ते यशोवांच्छादोष. ३ धनवांछादोष - धननी इच्छाए सामायिक करवुं ते धनवांच्छा दोष. ४ गर्वदोष -मने लोको धर्मि कहे छे अने हूं सामायिक पण तेज करूं छं ? एवो अध्यवसाय ते गर्वदोष. ५ भयदोष - हुं श्रावककुलमां जन्म्यो लुं, मने लोको मोटा तरीके मान आपे छे, अने जो सामायिक नहि करु तो कहेशे के आटली क्रिया पण नथी करतो; एम निंदाना भयथी सामायिक करे ते भयदोष. ६ निदानदोष - सामायिक करीने तेनां फळथी धन, स्त्री, पुत्रादिक मळवानुं इच्छे ते निदानदोष.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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