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चारगति,
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मद, क्षुधा आदि देवताओ पण आयुष्य व्यतित करी रह्या छे; ए देवगति. एम चार गति सामान्यरुपे कही. आचारे गतिमां मनुव्यगति सौथी श्रेष्ठ अने दुर्लभ छे, आत्मानुं परमहित मोक्ष ए गतिथी पमाय छे; ए मनुष्यगतिमां पण केटलाक दुःख अने आत्मसाधनमां अंतरायो छे.
एक तरुण सुकुमारने रोमे रोमे लालचोळ सुया घोंचवाथी जे असह्य वेदना उपजे छे; ते करतां आठगुणी वेदना गर्भस्थानमां जीव ज्यारे रहे छे त्यारे पामे छे. लगभग नव महीना मळ, मूत्र, लोही, परु आदिमां अहोरात्र मुर्छागत स्थितिमां वेदना भोगवी भोगवीने जन्म पामे छे. गर्भस्थाननी वेदनाथी अनंतगणी वेदना जन्मसमये उत्पन्न थाय छे. त्यार पछी बाळावस्था पमाय छे. मळमूत्र, धूळ अने नग्नावस्थामां अणसमजथी रझळी रडीने ते बाळा - वस्था पूर्ण थाय छे; अने युवावस्था आत्रे छे. धन उपार्जन करवा माटे नाना प्रकारनां पापमां पडवुं पडे छे. ज्यांथी उत्पन्न थयो छे त्यां एटले विषय विकारमां वृत्ति जाय छे. उन्माद, आळस, अभिमान, निंद्यद्रष्टि, संयोग वियोग एम घटमाळमां युवावय चाली जाय छे त्यां वृद्धावस्था आवे छे. शरीर कंपे छे, मुखे लाळ झरे छे. त्वचापर करोचली पडी आय छे. सुंब सांभळ अने देखं ए शक्तियो केवळ मंद थइ जाय छे. केश धवळ थइ खरवा मंडे छे; चालवानी आय रहेती नथी. हाथमां लाकडी लइ लडथडीयां खातां चालबुं पडे छे. कांतो जीवन पर्यंत खाटले पड्यां रहेवुं पडे छे. श्वास, खांसी इत्यादिक रोग आवीने वळगे छे, अने थोडा काळमां काळ आवीने कोळीओ करी जाय छे. आ देहमांथी जीव चाली नीकळे छे. काया हती नहती थइ जाय छे. मरण समये पण केटली वधी वेदना छे ? चतुर्गतिनां दुःखमां जे मनुष्यदेह श्रेष्ट मां पण केलां बधां दुःख रह्यां छे तेम छतां उपर जणाव्या