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________________ २० मोक्षमाला-पुस्तक बीजं. कडं. आधुनिक केळवणीथी जिनेश्वरनी भक्ति कंइ फळदायक नथी एम मने आस्था थइ हती. हे नाश पामी छे. जिनेश्वर भगवाननी अवश्य भक्ति करवी जोइए ए हुं मान्य राखुं छउं. ___ सत्य-जिनेश्वर भगवाननी भक्तिथी अनुपम लाभ छे, एनां कारणो महान छे; तेमना पाम उपकारने लीधे पण तेओनी भक्ति अवश्य करवी जोइए. वळी तेओना पुरुषार्थनुं स्मरण थतां पण शुभ वृत्तियोनो उदय थाय छे. जेम जेम श्री जिननां स्वरूपमां वृत्ति लय पामे छे तेम तेम ६ रम शांति प्रवहे छे. एम जिनभक्तिनां कारणो अत्रे संक्षेपमां कह्यां छे ते आर्थियोए विशेषपणे मनन करवां योग्य छे. पार शिक्षापाठ १५ भक्तिनो उपदेश. तोटकछंद. शुभ शीतळतामय छांय रही, मनवांछित ज्यां फळपंक्ति कही; जिन भक्ति गृहो तरु-कल्प अहो, भजिने भगवंत भवंत लहो. १ निज आत्मस्वरुप मुदा प्रगटे, मन ताप उताप तमाम मटे अति निर्जरता वण दाम गृहो, भजिने भगवंत भवंत लहो. २ समभावि सदा परिणाम थशे, जडमंद अधोगति जन्म जशे; शुभ मंगळ आ परिपूर्ण चहीं, भजिने भगवंत भवंत लहो. ३ शुभ भाववडे मन शुद्ध करा, नवकार महा पदने समरो नहि एह समान सुमंत्र कहो, भजिने भगवंत भवंत लहो. ४ करशो क्षय केवळ राग कथा, धरशो शुभ तत्वस्वरुप यथा नृपचंद्र प्रपंच अनंत दहो, अजिने भगवंत भवंत लहो. ५
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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