SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सारजन्ट, डॉक्टर पीटर्सन, मि. याज्ञिक अने अन्य प्रतिष्ठित पुरुषोनी प्रेरणाथी श्रीमद्ना शतावधान जोवाने माटे एक महान् लोकसभा बोलववाने व्यवस्था करवामां आवी. आ असाधारण शक्तिवाळा युवकनी स्तुति अने कदर लोकोए अने पत्रवाळाओए* उत्तम रीते प्रदर्शित करी. सर चालें तेमने युरोपमा जई त्यां पोतानी शक्तिओ दर्शाववाने भलामण करी पण तेओ तेम करी शक्या नहि. कारण के तेमणे विचार्यु के, युरोपमा पोते जैनधर्मानुसार रही शके नहि. आवी रीते समग्र प्रजामां ख्याति थया पछी तेमना पर एकाएक नवं परिवर्तन आव्यु होय तेम जणायु. वीस वर्षनी वये प्रजानी दृष्टिमाथी ___ * जूदा जूदा वर्तमानपत्रोए श्रीमद् राजचंद्रना संबंधमां लखेल लेखो. मांथी अहीं ता. ४, डिसेम्बर, १८८६ ( संवत् १९४३ ना मागशर शुद ८, शनि) ना अंकमां 'मुंबई समाचार' पत्रे लखेलो एक अग्रलेख (Leading article) मूकीए छीए:अदभुत स्मरणशक्ति तथा कविताशक्ति धरावनार एक जवान हिंदुनी अत्रे पधरामणी, अन तेना तरफथी थता शतावधानना प्रयोग. मोरबीथी कविश्री रायचंद्रजी रवजीभ ई नामनो मात्र ओगणीश वरसनी वयनो एक हिंदु गृहस्थ अत्रे आवी स्मरणशक्ति तथा कविताशक्तिनां जे अद्. भुत कृत्यो करी देखाडे छे तेनाथी वांचनाराओने अमे वाकेफ करता जईए छीए, एवी महान् शक्तिना पुरुषो एकथी वधारे आवी गया छे, अने खुद मुंबईमां शीघ्र कवि पंडित गट्ठलालजी तेवी शक्ति धरावनार तरीके जाणीता छे; पण हमणा आवेलो सदर्ह पुरुष तेओ करतां चढती शक्तिनो कहेवाय छे; एटले बीजाओ ज्यारे अष्टावधानना एटले एकीवेळा आठ प्रकारना प्रयोगो करी बतावे छे त्यारे आने शतावधानी एटलं एकसो प्रयोगो करी देखाडनारो समजवामां आवे छे. तेमनानां रहेली शक्तिनी मोटी खुबी ए छे के, तेओ एकी वेळा अनेक बाबत पोताना मनमां याद राखी तथा रमी शके छ; अने ते बाबत जेम सहेली तेम कविता, गणीत अने भाषाना सरखी अघरी पण होय छे. गमे एवा कठण छंदमां तेओ बोल बोलतामां कविता रचे छे; गमें एवी अजाणी अने पारकी भाषामां कहेला उलट पालट शब्दोना वाक्योने सरखां गोठवी आपे छ; अने ते सधळु एक बीजानी साथे वचे वचे करे छे.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy