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आजना हिंदीओ.
[अलाहबादना 'पायोनीयर' (२२, मे, १९०१) पन उपरथी.] .
अमे मुंबईना वर्तमानपत्रोमाथी श्रीमद् राजचंद्र रवजीभाई (प्रसिद्धिमा 'कवि' तरीके ज्ञात थयेला) अने उगता जैनसुधारक के जे काठियावाडमां आवेल राजकोटमा ३३ वर्षनी अकाल उमरे १९०१ ना एप्रिलनी नवमीए गत थया तेनुं टुंक वर्णन क्यारनुं टांकेल छे. ज्यारे १९ वर्षना हता त्यारे हिंदीना शताबधानी कवि वेओ एकज छ एवं मान श्रीमद्ने मळ्युं हतुं. अवधान एटले लक्ष. शतावधान एटले एकी वखते सो वस्तुपर ध्यान आपq ते. एक कवि ज्यारे पोतामी स्मरणशक्तिमा एक सो बाबतोनो संग्रह करी राखे छे त्यारे ते शतावधानी कहेवाय छे. आ बाबतोमा जुदी जुदी भाषाओनी कविताओ के जेमांना शब्दो आडाअवळा क्रममां गमे तेम कहेवामां आवे छे, अथवा शेतरंज, पानां आदि केटलीक रमतो अने बीजी केटलीक बाबतोनो समावेश थाय छे. आ अवधानक्रियामां घंट वगाडवामां आवे छे तेना टकारा गणतां गणतां गणितना दाखलाओ करी आपे छे. कवित्वनी बक्षीस साथेनी-कारण के शतावधानी कविने पूछेली कविता तात्कालिक अने शिघ्र रीते करवी पडे छे-स्मरणशक्तिर्नु आवी रीते व्यक्तत्व वर्णन करतां दृष्टिए जोयाथीज तेनो खरो ख्याल आवी शके छे.
श्रीमद् राजचंद्र, स्मरणशक्तिनो केटलो बधो विकास करी शकाय छे तेना अध्यात्मशास्त्रदृष्टया प्रत्यक्ष उदाहरणरुप हता. तेमना स्तुतिकारो तेओ आपणा समय अने देशना महत्तम नीतिशास्त्रना उपदेशकोमांना एक हता एम गणता; अने जैनसमुदायना सुशिक्षित पुरुषो तेओने आ पंचमकालना एक उछरता महान् फिलसुफ तरीके लेखता. तेमनो जन्म काठियावाडना ववाणिया गाममां वणिकज्ञातिमां १८६७ मां थयो हतो. नानपणमां ज्यारे तेओ शाळामां जता त्यारे तेओए