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तत्वावबोध भाग १७.
शिक्षापाठ ९८ तत्त्वावबोध भाग १७..
जे न्यायथी जय मेळवी शकतो नथी; ते पछी गाळो भांड छे; तेम पवित्र जैनना अखंड तत्वसिद्धांतो शंकराचार्य, दयानंद संन्यासी वगरे ज्यारे तोडी न शक्या त्यारे पछी जैन नास्तिक है, सो चार्वाकमेंसे उत्पन्न हुआ है एम कहेवा मांडयुं. पण ए स्थळे कोइ प्रश्न करे, के महाराज ! ए विवेचन तमे पछी करो. एवा शब्दो कहेवामां कंइ वखत विवेक के ज्ञान जोइतुं नथी; पण आनो उत्तर आपो के जैनवेदथी कयी वस्तुमां उतरतो छे. एनुं ज्ञान, एनो बोध, एर्नु रहस्य, अने एनुं सत्शील के, छे ते एकवार कहो ? आपना वेद विचारो कयी बावतमां जैनथी चढे छे ? आम ज्यारे मर्मस्थानपर आवे त्यारे मौनता शीवाय तेओ पासे बीजें कंइ साधन रहे नहीं. जे सत्पुरुषोनां वचनामृत अने योगबळथी आ सृष्टिमां सत्यदया, तत्त्वज्ञान अने महाशील उदय पामे छे, ते पुरुषो करतां जे पुरुषो शृंगारमा राच्या पडया छे, सामान्य तत्त्वज्ञानने पण नथी जाणता, जेनो आचार पण पूर्ण नथी, तेने चढता कहेवा,-परमेश्वरने नामे स्थापवा अने सत्यस्वरुपनी अवर्ण भाषा बोलवी, परमात्म स्वरुप पामेलाने नास्तिक कहेवा, ए एमनी केटली बधी कर्मनी बहोलतानुं सूचवन करे छे ? परंतु जगत् मोहांध छे मतभेद छे त्यां अंधारुं छे. ममत्व के राग छे त्यां सत्य तत्त्व नथी. ए वात आपणे शा माटे न विचारवी?
हुँ एक मुख्य वात तमने कहुं हुं के जे ममत्वरहितनी अने न्यायनी छे. ते ए छे के गमे ते दर्शनने तमे मानो; गमे तो पछी तमारी द्रष्टिमां आवे तेम जैनने कहो, सर्व दर्शननां शास्त्रतत्त्वने जुओ तेम जैनतत्त्वने पण जुओ. स्वतंत्र आत्मिकशक्तिए जे योग्य