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मोक्षमाळा- पुस्तक बीजं.
पंदरमो दोष. उत्पत्ति ध्रुवता लेतां कर्त्तानी सिद्धि थाय जेथी सर्वज्ञ वचन त्रुटी जाय ए सोळमो दोष. उत्पत्ति विघ्नता रुपे पापपुण्यादिकनो अभाव एटले धर्माधर्म सघळं गयुं ए सत्तरमो दोष. उत्पत्ति, विघ्नता अने सामान्य स्थितिथी ( केवळ अचळ नहीं ) त्रिगुणात्मक माया सिद्ध थाय छे ए अढारमो दोष.
शिक्षापाठ ८९ तत्त्वावबोध भाग ८.
एटला दोष ए कथनो सिद्ध न थतां आवे छे. एक जैनमुनिए मने अने मारा मित्रमंडळने एम कां हतुं के जैनसप्तभंगी नय अपूर्व छे, अने एथी सर्व पदार्थ सिद्ध थाय छे. नास्ति, अस्तिना एमां अगम्यभेद रह्या छे. आ कथन सांभळी अमे बधा घेर आव्या पछी योजना करता करतां आ लब्धिवाक्यनी जीवपर योजना करी. हुं धारं छं के एवी नास्ति अस्तिना बन्ने भाव जीवपर नहि उतरी शके. लब्धिवाक्यो पण क्लेशरूप थइ पडशे. तोपण ए भणी मारी कंइ तिरस्कारनी द्रष्टि नथी.
आना उत्तरमां अमे कयुं के आपे जे नास्ति अने अस्ति नय जीवपर उतारवा धार्यों ते सनिक्षेप शैलीथी नथी, एटले वखते
माथी एकांतिक पक्ष लेइ जवाय; तेम वळी हुं कंइ स्याद्वाद शैलीनो यथार्थ जाणनार नथी, मंदमतिथी लेश भाग जाणुं हुं. नास्ति अस्ति नय पण आपे यथार्थ शैली पूर्वक उतार्यो नथी. एटले हुं तर्कथी जे उत्तर दइ शकुं ते आप सांभळो.
उत्पत्तिमां "ना" एवी जे योजना करी छे ते एम यथार्थ थइ शके के "जीव अनादि अनंत छे."