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________________ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजु. भ्यतर परिग्रहनो त्याग, अल्पारंभनो त्याग ए सघळु नथी थयु त्यां सुधी हुं मने केवळ सुखी मानतो नथी. हवे आपने तत्वनी द्रष्टिए विचारतां मालम पडशे के लक्ष्मी, स्त्री, के कुटुंब एवडे सुख नथी. अने एने सुख गणुं तो ज्यारे मारी स्थिति पतित थइ हती त्यारे ए सुख क्यां गयुं हतुं ? जेनो वियोग छे, जे क्षणभंगुर छे अने ज्यां अव्याबाधपणुं नथी ते संपूर्ण के वास्तविक सुख नथी. एटला माटे थइने हुं मने सुखी कही शकतो नथी. हुं बहु विचारी विचारी व्यापार वहिवट करतो हतो तोपण मारे आरंभोपाधि, अनीति अने लेश पण कपट सेवq पडयुं नथी, एम तो नथीज. अनेक प्रकारना आरंभ, अने कपट मारे सेववां पडयां हतां. आप जो धारता होके देवोपासनथी लक्ष्मी प्राप्त करवी. तो ते जो पूण्य न होय तो कोइ काले मळनार नथी. पूण्यथी पामेली लक्ष्मी महारंभ कपट अने मानप्रमुख वधारवां ते महापापनां कारण छे, पाप नरकमां नाखे छे. पापथी, आत्मा महान् मनुष्यदेह एळे गुमावी दे छे. एक तो जाणे पुण्यने खाइ जवां, बाकी वळी पापर्नु बंधन करवू, लक्ष्मीनी अने ते वडे आखा संसारनी उपाधि भोगववी ते हुं धारु छ के विवेकी आत्माने मान्य न होय. में जे कारणथी लक्ष्मी उपार्जन करी हती, ते कारण में आगळ आपने जणाव्युं हतुं. जेम आपनी इच्छा होय तेम करो. आप विद्वान छो. हुं विद्वानने चाहुं छं. आपनी अभिलाषा होय तो धर्मध्यानमा प्रसस्त थइ सहकुटुंब अहीं भले रहो. आपनी उपजीविकानी सरळ योजना जेम कहो नेम हुं रुचिपूर्वक करावी आ. अहीं शास्त्राम्ययन अने सत्वस्तुनो उपदेश करो. मिथ्यारंभोपाधिनी लोलुप्तामा हुं धारु छ के न पडो, पछी आपनी जेवी इच्छा. पंडितः-आपे आपना अनुभवनी बहु मनन करवा जेवी
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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