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________________ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. शिक्षापाठ ६४ सुख विषे विचार भाग ४. अहीं आव्या पछी हुं सारां ठेकाणांनी कन्या पाम्यो. ते पण सुलक्षणी अने मर्यादाशील नीवडी, ए वडे करीने मारे त्रण पुत्र थया. वहिवट प्रबळ होवार्थी अने नाणुं नाणांने वधारतुं होवाथी दश वर्षमां हुं महा कोय्यावधि थइ पड्यो. पुत्रनां नीति, विचार, अने बुद्धि उत्तम रहेवा में बहु सुंदर साधनो गोठव्यां. जेथी तेओ आ स्थिति पाम्या छे. मारां कुटुंबीओने योग्य योन्य स्थळ गोठवी तेओनी स्थितिने सुधरती करी, दुकानना में अमुक नियमो बांध्या. उत्तम धामनो आरंभ पण करी लीधो. आ फक्त एक ममत्व खातर कयु. गयेलुं पार्छ मेळव्यु, अने कुळ परंपरानुं नामांकितपणुं जतुं अटकाव्यु, एम कहेवराववा माटे में आ सघळु कर्युः एने हुं सुख मानतो नथी. जो के हुं बीजा करतां सुखी छु, तोपण ए शातावेदनी छे. सत्सुख नथी. जगत्मां बहुधा करीने अशातावेदनी छे. में धर्ममां मारो काळ गाळबानो नियम राख्यो छेः शास्त्रनां मनन, सत्पुरुषोना समागम, यमनियम, एक महीनामां बार दिवस ब्रह्मचर्य, बनतुं गुप्तदान, सर्व व्यवहार संबंधीनी उपाधिमांथी केटलोक भाग बहुं अंशे में त्याग्यो छे. पुत्रोने व्यवहारमा यथायोग्य करीने हुं निग्रंथ थवानी इच्छा रा छं. हमणां निग्रंथ थइ शकुं तेम नथी, एमां संसारमोहिनी के एवं कारण नथी; परंतु ते पण धर्मसंबंधी कारण छे. गृहस्थ धर्मनां आचरण बहु कनिष्ठ थइ गयां छे, अने मुनियो ते सुधारी शकता नथी. गृहस्थ गृहस्थने विशेष बोध करी शके, आचरणथी पण असर करी शके. एटला माटे थइने धर्मसंबंधे गृहस्थवर्गने हुँ घणे भागे बोधी यमनियममां आ[छु. दरसप्ताहिके आपणे त्यां पांच में जेटला सद्गृहस्थोनी सभा भराय
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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