SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. नहीं पडतां विवेक विचारे जिनशिक्षानां मूळ तत्वपर आवे छे, उत्तम शीलवान मुनियोपर भाविक रहे छे, अने सत्य एकाग्रताथी पोताना आत्माने दमे छे. काळप्रभावने लीधे वखने वखते शासन कंइ सामान्य प्रकाशमां आवे छे. पण ते जोइए एवं प्रफुल्लित न थइ शके. 'वंक जडाय पछिमा' एवं उत्तराध्ययन सूत्रमा वचन छे, एनो भावार्थ ए छे के छल्ला तीर्थकर ( महावीरस्वामी ) ना शिष्यो वांका अने जड थशे. अने तेनी सत्यता विषे कोइने बोलवू रहे तेम नथी. आपणे क्यां तत्वनो विचार करीए छीए ? क्या उत्तम शीलनो विचार करीए छीए ? नियमित वखत धर्ममां क्यां व्यतित करीए छीए ? धर्मतीर्थना उदयने माटे क्यां लक्ष राखीए छीए ? क्यों दाझवडे धर्मतत्वने शोधीए छीए ? श्रावक कुळमां जन्म्या एथी करीने श्रावक, ए वात आपणे भावे करीने मान्य करवी जोइती नथी; एने माटे जोइता आचार-ज्ञान-शोध के एमांनां कंड विशेष लक्षणो होय तेने श्रावक मानिये तो ते यथायोग्य छे. द्रव्यादिक केटलाक प्रकारनी सामान्य दया श्रावकने घेर जन्मे छे अने ते पाळे छे. ए वात वखाणवा लायक छ, पण तत्वने कोइकज जाणे छे, जाण्या करतां झाझी शंका करनारा अर्धदग्धो पण छे जाणीने अहंपद करनारा पण छे, परंतु जाणीने तत्वना कांटामां सोळनारा कोइक विरलाज छे. परंपर आम्नायथी केवळ, मनःपर्यव अने परम अवधिज्ञान विच्छेद गयां द्रष्टिवाद विच्छेद गडे, सिद्धांतनो घणो भाग पण विच्छेद गयो; मात्र थोडा रहेला भागपर सामान्य समजणथी शंका करवी योग्य नथी. जे शंका थाय ते विशेष जाणनारने पूछवी. त्यांथी मनमानतो उत्तर न मळे तोपण जिनवचननी श्रद्धा चळविचल करवी योग्य नथी, कमके अनेकांत शैलीना स्वरुपने विरला जाणे छे.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy