SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११ दशाने - तेओना विचारोने अन तेओना ज्ञान, दर्शन, चारित्रने अवलोकशे तेमने आत्मानी प्रतीति सहेजे थया विना नहींज रहे.. श्रीमान् राजचंद्रना विचारोनो संग्रह ७०० पृष्टना एक भव्य ग्रंथना आकारे प्रजा सन्मुख क्यारनो रजु थयो छे. आ संग्रहम तेओना तत्त्वज्ञान संबंधी निर्णयो, तेओनी आभ्यंतर दशानां अवलोकनो, अने अनेक परमार्थ संबंधीना विषयो छे. तत्त्वज्ञान के सिद्धांतज्ञान जेवा कठण विषयोना अधिकारीओ माटे ते ग्रंथनुं अवलोकन योग्य छे. 'मोक्षमाळा 'मां श्रीमान् राजचंद्रे सत्तर अढार वर्षनी वये पोतानो 'सामान्य मनोरथ' पोते आ प्रमाणे प्रकल्प्यो छेः मोहिनिभाव विचार अधीन थई, ना निरखुं नयने परनारी; पत्थर तूल्य गणुं परवैभव, निर्मळ तात्त्विक लोभ समारी ! द्वादशवृत अने दीनता धरि, सात्त्विक थाउं स्वरुप विचारी; ए मुज नेम सदा शुभ क्षेमक, नित्य अखंड रहो भव हारी. ते त्रिशला तनये मन चिंतवि, ज्ञान, विवेक, विचार वधारु; नित्य विशोध करी नव तत्त्वनो, उत्तम बोध अनेक उच्चारुं. संशय बीज उगे नहीं अंदर, जे जिननां कथनो अवधारू; राज्य सदा मुज एज मंनोरथ, धार, थश अपवर्ग, उतारुं. - सामान्य मनोरथ.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy