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काळे मार्गनुं होवापशुं छे. मार्गना मर्मने पाम्या विना कोई भूतकाळे मोक्ष पाम्या नथी, वर्तमानकाळे पामता नथी, अने भविष्यकाळे पामशे नहीं. श्री जिने सहस्र क्रियाओ अने सहस्र उपदेशो ए एकज मार्ग आपवा माटे कह्यां छे, अने ते मार्गने अर्थे ते क्रियाओ अने उपदेशो ग्रहण थाय तो ते सफळ छे, अने ए मार्गने भूली जइ ते क्रियाओ अने ते उपदेशो ग्रहण थाय तो ते सौ निष्फळ छे. श्री महावीर जे वाटेथी तर्या ते वाटेथी श्रीकृष्ण तरशे; जे वाटेथी श्रीकृष्ण तरशे ते वाटेथी श्री महावीर तर्या छे. ए वात गमे त्यां बेठां, गमे ते काळे, गमे ते श्रेणिमां, गमे ते योगमां ज्यारे पमाशे त्यारे पवित्र, शाश्वत सत्पदना अनंत अतींद्रिय सुखनो अनुभव थशे, ते वाट सर्व स्थळे संभवित छे. योग्य सामग्री नहीं मेळववाथी भव्य पण ए मार्ग पामतां अटक्या छे, तथा अटकशे, अने अटक्या हता. कोइ पण धर्म संबंधी मतभेद छोडी दुई एकाग्र भावथी सम्यक् योगे एज मार्ग संशोधन करवानी छे. विशेष शुं कहेतुं ? ते मार्ग आत्मामा रह्यो छे. आत्मत्व प्राप्य पुरुष - निर्मथ आत्मा - ज्यारे योग्यता गणी जे आत्मत्व अर्पशे-उदय आपशे त्यारेज ते प्राप्त थशे, त्यारेज तेनी वाट मळशे, त्यारेज ते मतभेदादिक जशे. मतभेद राखी कोई मोक्ष पाम्या नथी, विचारीने जेणे मतभेदने टाळ्यो ते अंतर्वृत्तिने पामी क्रमेकरी शाश्वत मोक्षने पाम्या छे, पामे छे अने पामशे, "
प्रोफेसर ब. क. ठाकोरे श्रीमान्ना विचारोनुं अवलोकन कर्याबाद एवा अभिप्रायनो निश्चय कर्यो हतो के श्रीमान् राजचंद्र एक जन्मविरागी ( Born ascetic ) हता. तेओनी बालचर्याथीज तेओने विषे वैराग्य हतो. तेओनी आत्मज्ञाननी कई भूमिए स्थिरता हशे तेनो विचार करवाने माटे तेओश्रीना विचारोना मनननी नियमा जरुर छे.
आज जडवादमूलक विज्ञानना जमानामां आत्मवादनी प्रतीति लोकोमाथी ओछी थती जाय छे. जेओ श्रीमान् राजचंद्रने, - तेओनी