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________________ अमितगतिविरचिता कश्चनेति निजगाद कोविदो निश्चयार्थमयमेव पृच्छयताम् । कङ्कणे सति करे व्यवस्थिते नादरं विदधते ऽन्दके' बुधाः ॥८१ वादिनिर्जयविषक्तमानसो वादमेष यदि कर्तुमागतः। तं तदा सममनेन कुर्महे सर्वशास्त्रपरमार्थवेदिनः॥८२ दर्शनेषु न तदस्ति दर्शनं षट्स' यन्न सकलो ऽपि बुध्यते। तत्त्वतोऽत्र नगरे बुधाकुले कि वदिष्यति कुधीरयं परम् ॥८३ भारतीमिति निशम्य तस्य तां कश्चिदेत्य निजगाद तं द्विजः। को भवानिह किमर्थमागतस्त्वं विरुद्धकरणो निगद्यताम् ॥८४ तं जगाद खचराङ्गजस्ततो भट्ट निर्धनशरीर रहम् । आगतोऽस्मि तृणकाष्ठविक्रयं कर्तुमत्र नगरे गरोयसि ॥८५ भाषते स्म तमसौ ततो द्विजो भद्र वादमविजित्य' विष्टरे । किं न्यविक्षत भवानिहाचिते दुन्दुभि लघु निहत्य वादिकम् ॥८६ ८१) १. क आदर्श। ८२) १. क आसक्त। ८३) १.क शिवबौद्धवेदनैयायिकमीमांसकजैनमतानि । ८५) १. क निर्धनपुत्रः । ८६) १. क अनिर्जित्य । २. क उपविष्ट[वा]न् । ३. क शीघ्रम् । उस समय कोई विद्वान् बोला कि यह कौन है, इसका निश्चय करनेके लिए इसीसे स्थित रहनेपर विद्वान् मनुष्य दर्पणके विषयमें आदर नहीं किया करते हैं-हाथ कंगनको आरसी क्या ।।८।। यदि यह वादियों के जीतनेकी इच्छासे यहाँ वाद करनेके लिए आया है तो समस्त शास्त्रोंके रहस्यको जाननेवाले हम लोग इसके साथ उसे (वादको ) करेंगे ॥८२॥ छह दर्शनोंमें वह कोई भी दर्शन नहीं है जिसे कि यथार्थमें पूर्णरूपसे हम न जानते हों। यह नगर विद्वानोंसे भरपूर है, यहाँ यह दुर्बुद्धि दूसरा ( छह दर्शनोंसे बाह्य ) क्या बोलेगा? ॥८॥ ___ उसकी इस वाणीको सुनकर कोई एक ब्राह्मण आकर मनोवेगसे बोला कि आप कौन हैं और विरुद्ध कार्यको करते हुए तुम यहाँ किस लिए आये हो, यह हमें बतलाओ ।।८४॥ यह सुनकर उससे वह विद्याधर पुत्र (मनोवेग ) बोला कि हे भट्ट ! मैं एक निर्धन मनुष्य का पुत्र हूँ और इस बड़े भारी नगरमें घास व लकड़ियोंको बेचनेके लिए आया हूँ॥८५॥ इसपर वह ब्राह्मण उससे बोला कि हे भद्र पुरुष! आप यहाँ वादको जीतनेके बिना ही शीघ्रतासे वादकी भेरीको बजाकर इस पूज्य सिंहासनके ऊपर क्यों बैठ गये ? ॥८६॥ ८१) क ड इ पृच्छतां; ब ड इ करव्य; ड विदधतेष्टके। ८२) ब निषक्त। ८३) ड इ वरं for परं। ८५) इ भद्र । ८६) इमवजित्य; ब विष्टरं, ड न्यविक्ष्यत; इ न्यवीक्षत ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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