SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमितगतिविरचिता विद्यादपंहुताशेन दह्यमाना निरन्तरम् । निरीयुाह्मणाः क्षिप्रं परवादिजिगीषया ॥६८. केचित्तत्र वदन्ति स्म किं तर्काध्ययनेन नः। वादे पराङ्मुखीकृत्य यदि कश्चन गच्छति ॥६९ युष्माभिनिजिता वादा बहवः परदुर्जयाः। यूयं तिष्ठत मौनेन वयं वादं विदध्महे ॥७० एवमेव गतः कालः कुर्वतां पठनश्रमम् । अवादिषुः' परे तत्रै विप्राः प्रज्ञामदोद्धताः ॥७१ अपरे बभणुस्तत्र पातयित्वा यशःफलम् । परनिर्जयदण्डेन गृह्णीमो वादवृक्षतः ॥७२ एवमादीनि वाक्यानि जल्पन्तो द्विजपुंगवाः। वादकण्डूययाश्लिष्टाः ब्रह्मशाला प्रपेदिरे ॥७३ ७१) १. क ब्रुवन्ति स्म । २. क सभायाम् । ७३) १. क वादखर्जया। .. तब निरन्तर विद्याके अभिमानरूप अग्निसे जलनेवाले वे ब्राह्मण दूसरे वादीको जीतनेकी इच्छासे निकल पड़े ॥६८॥ ___वहाँ कुछ ब्राह्मण विद्वान् बोले कि यदि कोई हमें वादमें पराङ्मुख करके चला जाता है तो फिर हमारे तर्कशास्त्रके पढ़नेका फल ही क्या होगा ? ॥६९।। - कुछ विद्वान् बोले कि जो बहुत-से वाद (शास्त्रार्थ ) दूसरोंके द्वारा नहीं जीते जा सकते थे उन्हें आप लोग जीत चुके हैं । अतएव अब आप लोग मौनसे स्थित रहें, इस समय हम वाद करेंगे ॥७०॥ - दूसरे कुछ ब्राह्मण विद्वान् वहाँ बुद्धिके अभिमानमें चूर होकर बोले कि पढ़ने में परिश्रम करनेवाले हमलोगोंका समय अब तक यों ही गया। अर्थात् अब तक कोई वादका अवसर न मिलनेसे हम अपने विद्याध्ययनमें किये गये परिश्रमका कुछ भी फल नहीं दिखा सके थे, अब चूंकि वह अवसर प्राप्त हो गया है अतएव अब हम वादीको परास्त कर अपने पाण्डित्यको प्रकट करेंगे ॥७१॥ वहाँ अन्य विद्वान् बोले कि अब हम वादीको वादमें परास्त करके उसके ऊपर प्राप्त हुई विजयरूपी लाठीके द्वारा वादरूपी वृक्षसे यशरूपी फलको गिराकर उसे ग्रहण करते हैं ॥७२॥ . इनको आदि लेकर और भी अनेक वाक्योंको बोलते हुए वे श्रेष्ठ ब्राह्मण वादकी खुजलीसे संयुक्त होकर ब्रह्मशालामें जा पहुँचे ।।७३॥ ६८) ब परवाद। ६९) क ड इ ध्ययने मम; इ वादैः; क कश्चिन्न । ७२) ब परिनिर्जयं ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy