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________________ अमितगतिविरचिता ऊर्वीकृतकरं रौद्रं कृतान्तमिव कुञ्जरम् । क्रुद्धं संमुखमायान्तं तत्रादर्शद् गुरुस्यदम् ॥६ त्रस्तो ऽतो ऽग्रीकृतस्तेन पथिको भिल्लवमना। अदृष्टपूर्वके कूपे धावमानः पपात सः॥७ शरस्तम्बं पतंस्तत्र त्रस्तधीः स व्यवस्थितः। भव्यो धर्ममिवालम्ब्य दुर्गमे नरकालये ॥८ अधस्तासिन्धुरात्त्रस्तो यावदेष विलोकते। यमदण्डमिवाद्राक्षीत्तावत्त महाशयुम् ॥९ आखुभ्यां शुक्लकृष्णाभ्यां पश्यति स्म स सर्वतः । खन्यमानं शरस्तम्बं पक्षाभ्यामिव जीवितम् ॥१० उरगांश्चतुरस्तत्र दिक्चतुष्टयवर्तिनः। ददर्शागच्छतो दीर्घान् कषायानिव भीषणान् ॥११ ६) १. क वने । २. महावेगम्; क गुरुतरशरीरं । ७) १. भयभीतः। ९) १. क हस्तिनः । २. क कूपे । ३. अजगरम् । १०) १. क मूषकाभ्याम् ।। वहाँ उसने ढूंढको ऊपर उठाकर भयानक यमराजके समान अतिशय वेगसे सामने आते हुए क्रुद्ध हाथीको देखा ॥६॥ उस हाथीने उसे भीलोंके मार्गसे अपने आगे कर लिया। तब उससे भयभीत होकर वह पथिक भागता हुआ जिसको पहिले कभी नहीं देखा था ऐसे कुएँके भीतर गिर पड़ा ॥७॥ भयभीत होकर उसमें गिरता हुआ वह तृणपुंजका (अथवा खशके गुच्छे या वृक्षकी जड़ोंका ) आलम्बन लेकर इस प्रकारसे वहाँ स्थित हो गया जिस प्रकार कोई भव्य जीव दुर्गम नरकरूप घरमें पहुँचकर धर्मका आलम्बन लेता हुआ वहाँ स्थित होता है ।।८॥ हाथीसे भयभीत होकर जब तक यह नीचे देखता है तब तक उसे वहाँ यमके दण्डेके समान एक महान् अजगर दिखाई दिया ॥९॥ तथा उसने यह भी देखा कि उस तृणपुंजको-जिसके कि आश्रयसे वह लटका हुआ था-श्वेत और काले रंगके दो चूहे सब ओरसे इस प्रकार खोद रहे हैं जिस प्रकार कि शुक्ल और कृष्ण ये दो पक्ष जीवित ( आयु) को खोदते हैं-उसे क्षीण करते हैं ॥१०॥ . इसके अतिरिक्त उसने वहाँ चार कषायोंके समान चारों दिशाओंमें आते हुए अतिशय भयानक चार लम्बे सोको देखा ॥११॥ ६) अ ड इ मायातं; अ इ तत्रापश्यद्; ब क ड इ गुरुस्पदम् । ७) इ वर्मनि अ क इ अदृश्यपूर्वके । ८) अ क इ सरस्तंबं; इ त्रसधीः। ९) इ सिंधुरत्रस्तो। १०) इ सरस्तम्बं ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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