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________________ २५६ अमितगतिविरचिता निहत्य रामस्त्रिशिरःखराद्यानास्ते समं लक्ष्मणजानकीभ्याम् । याव_ने वीररसानुविद्धो लङ्काधिपस्ताववियाय तत्र ॥९५ स छद्मना हेममयं कुरङ्गं प्रदय रामाय जहार सीताम् । निपात्य पक्षाधिकृतं शकुन्तं नोपद्रवं कस्य करोति कामो ॥९६ निहत्य वालिं बलिनं बलिष्ठः सुग्रीवराजे कपिभिः समेते। संमोलिते प्रेषयति स्म वार्ता लब्धं हनमन्तमसौ' प्रियायाः ॥९७ तंत्रायाते ऽमितगतिरये वीक्ष्य रक्षोनिवासे . सीतामाज्ञां लघु रघुपतिर्वानराणां वितीयं । शैलेंस्तुङ्गैजलनिधिजले बन्धयामास सेतुं ___कान्ताकाङक्षी किमु न कुरुते कार्यमाश्चर्यकारि ॥९८ इति धर्मपरीक्षायाममितगतिकृतायां पञ्चदशः परिच्छेदः ॥१५ ९५) १. दैत्यान् । २. तिष्ठति । ३. गुहायाम् । ९६) १. जटापक्षिणम् । ९७) १. क रामः। ९८) १. हनूमति; क लङ्कायाम् । २. सति । ३. वेगे।। रामचन्द्र त्रिशिर और खर आदि राक्षसोंको मारकर लक्ष्मण और सीताके साथ. वनमें अवस्थित थे कि इतने में वहाँ वीररससे परिपूर्ण-प्रतापी-लंकाका स्वामी (रावण) आया ॥१५॥ उसने छलपूर्वक रामके लिए सुवर्णमय मृगको दिखलाकर व रक्षाके कार्य में नियुक्त पक्षी-जटायुको-मारकर सीताका अपहरण कर लिया । सो ठीक है-कामी मनुष्य किसके लिए उपद्रव नहीं करता है ? वह अपने अभीष्टको सिद्ध करनेके लिए जिस किसीको भी कष्ट दिया ही करता है ॥१६॥ तत्पश्चात् अतिशय प्रतापी रामने बलवान् वालिको मारकर बन्दरोंके साथ सुग्रीव राजाको अपनी ओर मिलाया और तब सीता के वृत्तान्तको जाननेके लिये उसने हनुमान्को लंका भेजा ॥१७॥ इस प्रकार अपरिमित गमनके वेगसे परिपूर्ण-अतिशय शीघ्रगामी-वह हनुमान लंका गया और वहाँ राक्षस रावणके निवासगृहमें सीताको देखकर वापस आ गया। तब रामने शीघ्र ही बन्दरोंको आज्ञा देकर उन्नत पर्वतोंके द्वारा समुद्रके जलके ऊपर पुलको बँधवा दिया । ठीक है-स्त्रीका अभिलाषी मनुष्य कौनसे आश्चर्यजनक कार्यको नहीं करता है-वह उसकी प्राप्तिकी इच्छासे कितने ही आश्चर्यजनक कार्योंको भी कर डालता है ।।९८॥ इस प्रकार आचार्य अमितगतिविरचित धर्मपरीक्षामें पन्द्रहवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥१५॥ ९५) बरसानुबद्धो। ९६) अ ड रक्षाधिकृतम् ; अ सुकान्तं for शकुन्तम् । ९७) अ सुग्रीववालिः । ९८) इगतिरवी; अ सीतामज्ञाम्; क पञ्चदशमः ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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