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________________ [१६] एकैको वानरः पञ्च जगामाथ घराघरान् । गृहीत्वा हेलयाकाशे कुर्वन् क्रीडामनेकधा ॥१ रामायणाभिधे शास्त्रे वाल्मीकिमुनिना कृते। .. किं भो दाशरथेवृत्तमीदृक्षं कथ्यते न वा ॥२ ते ऽवोचन्नीदृशं सत्यं केनेदं क्रियते ऽन्यथा। प्रभातं छाद्यते जातु न केनापि हि पाणिना ॥३ ततो रक्तपटो ऽलापोद्यदेको वानरो द्विजाः। आदाय पर्वतान् पञ्च गगने याति लीलया ॥४ शृगालौ द्वौ तदा स्तूपमेकमादाय मांसलौ। ब्रजन्तौ नभसि क्षिप्रं वार्यते केन कथ्यताम् ॥५ भवदीयमिदं सत्यं मदीयं नात्र दृश्यते। विचारशून्यतां हित्वा कारणं न परं मया ॥६ १) १. पर्वतान् । ५) १. मांसपूरितो । .. ६) १. सत्यम् । उस समय रामकी आज्ञासे एक-एक बन्दर पाँच-पाँच पर्वतोंको अनायास लेकर आकाशमें अनेक प्रकारकी क्रीड़ा करता हुआ वहाँ जा पहुँचा ॥१॥ __ मनोवेग कहता है कि हे ब्राह्मणो! वाल्मीकि मुनिके द्वारा विरचित रामायण नामक शास्त्रमें रामका वृत्त इसी प्रकारसे कहा गया है कि नहीं ॥२॥ - इसपर ब्राह्मणोंने कहा कि सचमुच में ही वह इसी प्रकारका है, उसे अन्य प्रकार कौन कर सकता है। कारण कि कोई भी हाथके द्वारा कभी प्रभातको-सूर्यके प्रकाशको-नहीं आच्छादित कर सकता है ॥३॥ ____ ब्राह्मणोंके इस उत्तरको सुनकर रक्त वस्त्रका धारक वह मनोवेग बोला कि हे विप्रो! यदि एक-एक बन्दर पाँच-पाँच पर्वतोंको लेकर आकाशमें अनायास जा सकता है तो फिर हम दोनोंके साथ उस टीलेको लेकर शीघ्रतासे आकाशमें जाते हुए उन दोनों पुष्ट शृगालोंको कौन रोक सकता है, यह हमें कहिए ॥४-५।। आपका यह रामायणकथित वृत्त सत्य है और मेरा वह कहना सत्य नहीं है, इसका कारण यहाँ मुझे विवेकहीनताको छोड़कर और दूसरा कोई भी नहीं दिखता है ॥६॥ १) इ महीधरान् । २) अ वृत्तं किमर्थम् । ३) ड स्व for हि । ४) अ ड यद्येको । ५) भ नौ for द्वौ; बक वार्यते । ६) ड नापरम् ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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