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अमितगतिविरचिता
स्थितोऽहं तापसस्थाने कुर्वाणो दुष्करं तपः । न श्रेयस्कार्यमारभ्य प्रमाद्यन्ति हि पण्डिताः ॥ ३४ मागवता श्रुत्वा साकेतपुरमेकदा । माता विवाह्यमाना स्वा वरेणान्येन वीक्षिता ॥३५ विनिवेद्य स्वसंबन्धं मया पृष्टास्तपोधनाः । आचक्षते न दोषो ऽस्ति परेणास्या विवाहने ॥ ३६ द्रौपद्याः पञ्च भर्तारः कथ्यन्ते यत्र पाण्डवाः । जनन्यास्तव को दोषस्तत्र भर्ता द्वये सति ॥३७ एकदा परिणीतापि विपन्ने' दैवयोगतः । भर्तर्यक्षतयोनिः स्त्री पुनः संस्कारेंमर्हति ॥३८ प्रतीक्षेताष्ट वर्षाणि प्रसूता वनिता सती । अप्रसूता तु चत्वारि प्रोषिते सति भर्तरि ॥३९ पञ्चस्वेषु गृहीतेषु कारणे सति भर्तृषु । न दोषो विद्यते स्त्रीणां व्यासादीनामिदं वचः ॥४०
३६) १. ते सर्वे ब्रुतः । (?)
३८) १. एकवारम् । २. मृते । ३. अभग्नयोनि । ४. विवाहम् ।
३९) १. मार्गम् अवलोकयति । २. प्रदेशे वसिते; क मरणे ।
निकल पड़ा। फिर मैं सिरको मुड़ाकर तापस हो गया और तापसोंके साथ चल दिया ॥३३॥ इस प्रकार तापसोंके साथ जाकर मैं कठोर तपको करता हुआ तापसाश्रम में स्थित हो गया । सो ठीक भी है, क्योंकि, पण्डित जन जिस कल्याणकारी कार्यको प्रारम्भ करते हैं उसके पूरा करनेमें वे कभी प्रमाद नहीं किया करते हैं ||३४||
एक बार मैं अयोध्यापुरीमें गया और वहाँ, जैसा कि मैंने सुना था, अपनी माताको दूसरे वरके द्वारा विवाहित देख लिया ||३५||
तत्पश्चात् मैंने अपने सम्बन्ध में निवेदन करके — अपने पूर्व वृत्तको कहकर — उसके विषय में तापसोंसे पूछा । उत्तरमें वे बोले कि उसके दूसरे वरके साथ विवाह कर लेने में कोई दोष नहीं है । कारण कि जहाँ द्रौपदीके पाँच पाण्डव पति कहे जाते हैं वहाँ तेरी माताके दो पतियोंके होनेपर कौन-सा दोष है ? कुछ भी दोष नहीं है। एक बार विवाहके हो जानेपर भी यदि दुर्भाग्य से पति विपत्तिको प्राप्त होता है— मर जाता है - तो वैसी अवस्थामें अक्षतयोनि स्त्रीका - यदि उसका पूर्व पतिके साथ संयोग नहीं हुआ है तो उस अवस्थामें - फिरसे विवाह हो सकता है, अर्थात् उसमें कोई दोष नहीं है । पतिके प्रवासमें रहने पर प्रसूत स्त्रीको - जिसके सन्तान उत्पन्न हो चुकी है उसको - आठ वर्ष तक तथा सन्तानोत्पत्तिसे रहित अप्रसूत स्त्रीको चार वर्ष तक पतिके आगमनकी प्रतीक्षा करनी चाहिए - तत्पश्चात् उसके पुनर्विवाह
३४) अ च for हि । ३५) ब क इ स्मृत्वा for श्रुत्वा । ३६) ब दृष्टास्तपों । ३७) क पञ्च for यत्र । ३९) व अप्रसूतात्र । ४०) व पञ्चकेषु ।