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________________ धर्मपरीक्षा-१४ कन्यां क्षिप्त्वा पुरश्चुल्ल्याः पतिताया विचेतसः। निर्गत्योदरतो मातुनिपतामि स्म भस्मनि ॥२७ उत्थाय पात्रमादाय जननी भणिता मया। देहि मे भोजनं मातः क्षुधितो नितरामहम् ॥२८ आर्यो मम ततः प्राह दृष्टः कोऽपि तपोधनाः। युष्माभिर्जातमात्रो ऽपि याचमानो ऽत्र भोजनम् ॥२९ तैरुक्तमयमुत्पातो गेहानिर्धाटयतां स्फुटम् । भविष्यत्यन्यथा साधो तव विघ्नपरंपरा ॥३० ततोऽहं गदितो मात्रा याहि रे यममन्दिरम् । तापको मम दुर्जातः' से ते दास्यति भोजनम् ॥३१ मयावाचि ततो मातरादेशो मम दीयताम् । तया न्यगादि याहि त्वं निर्गत्य मम गेहतः ॥३२ ततोऽहं भस्मना देहमवगुण्ठचे विनिर्गतः । ततो मुण्डशिरो भूत्वा तापसस्तापसैः सह ॥३३ २७) १. मातापि। ३१) १. क ड [ढ] पुत्रः। २. यमः। ३३) १. अवलिम्प्य। तब वह चूल्हेके आगे कथड़ी डालकर अचेत होती हुई पड़ गयी। इस अवस्थामें मैं वहाँ माताके उदरसे निकलकर राखमें गिर गया।।२७।। तत्पश्चात् मैं उठा और बरतन लेकर मातासे बोला कि माँ! मैं बहुत भूखा हूँ, मुझे भोजन दे ॥२८॥ उस समय मेरे पूज्य नानाने उन तापसोंसे पूछा कि हे तपोरूप धनके धारक साधुजन! क्या आप लोगोंने ऐसे किसी व्यक्तिको देखा है जो जन्मसे ही भोजनकी माँग कर रहा हो ॥२९॥ इस प्रश्नके उत्तरमें वे बोले कि यह एक आकस्मिक उपद्रव है। इस बालकको स्पष्टतया घरसे निकाल दो, अन्यथा हे सत्पुरुष! तेरे यहाँ विघ्न-बाधाओंकी परम्परा उत्पन्न होगी ॥३०॥ तत्पश्चात् माताने मुझसे कहा कि अरे दुखपूर्वक जन्म लेकर मुझे सन्तप्त करनेवाला कुपूत ! जा, तू यमराजके घर जा-मर जा, वही यमराज तेरे लिए भोजन देगा ॥३१।। __ इसपर मैंने मातासे कहा कि अच्छा माँ! मुझे आज्ञा दे। तब माताने कहा कि जा, मेरे घरसे निकल जा ॥३२॥ माताके इस आदेशको सुनकर मैं अपने शरीरको भस्मसे आच्छादित करते हुए घरसे २७) अ क्षुप्त्वा नरश्चुल्ल्या, ब पुरस्तस्याः। २९) अ प्राहुर्दष्टः । ३०) ब भविष्यत्वन्यथा । अ विद्यः for विघ्न । ३१) क ड मन्दिरे; क दुर्जात । ३२) ड त्वगादि । ३३) अ ततो ऽहं गदितो यावदवगुण्ठ्य; अ गतो for ततो।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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