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धर्मपरीक्षा-१३ निव्रयाधोक्षजो व्याप्तश्चित्रभानुबुभुक्षया। शंकरः सर्वदा रत्या रागेण कमलासनः ॥७३ रामा सूचयते राग द्वेषो वैरिविदारणम् । मोहो विघ्नापरिज्ञानं भीतिमायुधसंग्रहः ॥७४ एते यः पीडिता दोषैस्तैमुच्यन्ते कथं परे'। सिंहानां हतनागानां न खेदोऽस्ति मृगक्षये ॥७५ सर्वे रागिणि विद्यन्ते दोषा नात्रास्ति संशयः। रूपिणीव सदा द्रव्ये गन्धस्पर्शरसादयः ॥७६ योकमूर्तयः सन्ति ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः। मिथस्तथापि कुर्वन्ति शिरश्छेदादिकं कथम् ॥७॥
७३) १. कृष्णः; क नारायणः । २. अग्निः । ७५) १. ब्रह्मादयः। ७६) १. पुरुषे । २. द्रव्यरूपे पुद्गलद्रव्ये । ७७) १. परस्परम् । २. तहि ।
कृष्ण निद्रासे, अग्नि भूखसे, शम्मु रतिसे और ब्रह्मा रागसे सर्वदा व्याप्त रहता है ॥७३॥
दूसरोंके द्वारा माने गये इन देवोंमें स्त्री-लक्ष्मी एवं पार्वती आदिकी स्वीकृति-रागभावको, शत्रुओंका विदारण-उन्हें पराजित करना-द्वेष बुद्धिको, विघ्न-बाधाओंका अपरिज्ञान मोह (मूर्खता ) को और आयुधों (चक्र, गदा व त्रिशूल आदि ) का संग्रह भयके सद्भावको सूचित करता है ।।७४।।
जिन रागादि दोषोंसे ये देव पीड़ित हैं वे दूसरे साधारण प्राणियोंको भला कैसे छोड़ सकते हैं-उन्हें तो वे निश्चयसे पीड़ित करेंगे ही। ठीक भी है-जो पराक्रमी सिंह हाथीको पछाड़ सकते हैं उन्हें तुच्छ हिरणके मार डालनेमें कुछ भी खेद (परिश्रम ) नहीं हुआ करता है ॥७॥
___ जो रागसे आक्रान्त होता है उसमें उपर्युक्त सब ही दोष विद्यमान रहते हैं, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं रहता। कारण यह कि अन्य सभी दोष रागके साथ इस प्रकारसे सदा अविनाभाव रखते हैं जिस प्रकार कि रूपयुक्त द्रव्यमें-पुद्गलमें-उस रूपके साथ सदा गन्ध, स्पर्श एवं रस आदि अविनाभाव रखा करते हैं ॥७६।।
यदि ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर ये एकमूर्तिस्वरूप हैं तो फिर वे शिरच्छेदन आदि जैसे जघन्य कृत्योंके द्वारा परस्परमें एक दूसरेका अपकार क्यों करते हैं ? ॥७॥
७४) ब क ड इ द्वेषं....मोहम् । ७५) इ एतैयः....ते मुच्यन्ते....परान् । ७६) अ नास्त्यत्र । ७७) अ ड ब्रह्माविष्णु; भ मिथस्तदापि, बस्तदापकूर्वन्ति: अब छेदादिभिः ।
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