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अमितगतिविरचिता
आहूय त्वरया कृत्वा दोषोत्पत्तिनिवेदनम् । तस्याहं दर्शितः श्वश्रवा वैद्यस्यातुचित्तया ॥७८ शङ्खमस्येवे मे दृष्ट्वा कपोलो ग्रोवनिष्ठुरौ । स्पृष्ट्वा हस्तेन सो ऽयासीदिङ्गिताकार पण्डितः ॥७२ अर्चावतं मुखे क्षिप्तं किंचनास्य भविष्यति । बुभुक्षार्तस्य शङ्के ऽहं चेष्टान्यस्य न होदृशी ' ॥८० खट्वाधःस्थं भाजनं तण्डुलानां दृष्ट्वा वैद्यो भाषते स्मेति दक्षः । मातर्व्याधिस्तण्डुलीयो दुरन्तः प्राणच्छेदी कृच्छ्रसाध्यो ऽस्य जातः ॥ भूरि द्रव्यं काङ्क्षितं मे यदि त्वं दत्से रोगं हन्मि सूनोस्तदाहम् । श्वश्रवा प्रोक्तं वैद्य दास्ये कुरु त्वं नीरोगत्वं जीवितादेष बालः ॥८२ शस्त्रेणातः पाटयित्वा कपोलौ शालीयानां तण्डुलानां समानाः । नानाकारा दशितास्तेन कीटास्तासां स्त्रीणां कुर्वतीनां विषादम् ॥८३
७८) १. वैद्यम् । २. पोडित ।
७९) १. शङ्खवादित [क] पुरुषस्येव । २. क पाषाणस्य । ३. वैद्यः । ४. हृदि चिन्तयामास । ८०) १. भवति ।
वैद्य अपने वैद्यस्वरूपको - आयुर्वेद - विषयक प्रवीणताको प्रकट करता हुआ वहाँ आ पहुँचा ॥७७॥
तब व्याकुलचित्त होकर मेरी सासने उस वैद्यको तुरन्त बुलाया और मेरे मुख विषयक दोष (रोग) की उत्पत्तिके सम्बन्ध में निवेदन करते हुए मुझे उसके लिए दिखलाया || ७८ ।।
वह शरीरकी चेष्टाको जानता था । इसीलिए उसने शंख ( अथवा शंखको बजानेवाले पुरुष) के समान फूले हुए व पत्थरके समान कठोर गालोंका हाथसे स्पर्श करके विचार किया कि भूख से पीड़ित होने के कारण इसके मुँहके भीतर कोई वस्तु बिना चबायी हुई रखी गयी है, ऐसी मुझे शंका होती है; क्योंकि, इस प्रकारकी चेष्टा दूसरे किसीकी नहीं होती है ।।७९-८० ॥
तत्पश्चात् उस चतुर वैद्यने खाट के नीचे स्थित चावलोंके बर्तनको देखकर कहा कि है माता ! इसको तन्दुलीय व्याधि - चावलोंके रखनेसे उत्पन्न हुआ विकार - हुआ है । यह रोग प्राणघातक, दुर्विनाश और कष्टसाध्य है । यदि तुम मुझे मेरी इच्छानुसार बहुत सा धन देती हो तो मैं तुम्हारे पुत्रके इस रोगको नष्ट कर देता हूँ । इसपर सासने कहा कि हे वैद्य ! मैं तुम्हें तुम्हारी इच्छानुसार बहुत सा धन दूँगी । तुम इसके रोगको दूर कर दो, जिससे यह बालक जीता रहे ॥ ८१-८२॥
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तब उसने शस्त्रसे मेरे गालोंको चीरकर शोक करनेवाली उन स्त्रियोंको शालिधानके चावलकणोंके समान अनेक आकारवाले कीड़ोंको दिखलाया || ८३ ॥
७८) अ दोषोत्पत्तिर्निवेद्यताम् । ७९ ) अ शंखस्येव च मे, ड शंखधास्येव । ८२) ब ड इ चोक्तं for प्रोक्तम् ।