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________________ धर्मपरीक्षा-९ यथा यथा मम वल्लो पीडयते शुचा । तथा तथा स्थितः कृत्वा स्तब्धो विह्वल विग्रहः ॥७१ रुदन्तों मे प्रियां श्रुत्वा सर्वा ग्रामीणयोषितः । मिलित्वावादिषुर्व्याधीन् योजयन्त्यः सहस्रशः ॥७२ एका जगाद मातॄणां सपर्या न कृता यतः । ततो ऽनिष्ट दोषो ऽयं परमस्ति न कारणम् ॥७३ अभणोदपरो दोषो देवतानामयं स्फुटम् । आकस्मिकीदृशी पीडा जायते ऽपरथा कथम् ॥७४ न्यगदोदपरा वामे निवेश्य वदनं करे । चालयन्त्यपरं ' मातर्जायन्ते कर्णसूचिकाः २ ॥७५ काचन इलैष्मिकं दोषमपरा पित्तसंभवम् । वातीयमपरावादीदपरा' सांनिपातिकम् ॥७६ इत्थं तासु वदन्तीषु रामासु व्याकुलात्मसु । आगतः शाबरो' वैद्यो भाषमाणः स्ववैद्यताम् ॥७७ ७१) १. शोकेन । ७३) १. सप्तमातृणाम् । २. पूजा । ७४) १. क स्त्री । २. पूजा न कृता । ७५) १. करम् । २. पीडा । ७६) १. क स्त्री । ७७) १. ना [न] यज्ञो वैद्यः; क नायती । १४९ सास शोकसे पीड़ित होकर जैसे-जैसे मेरे गालोंको पीड़ित करती - उन्हें दबाती थीवैसे-वैसे मैं व्याकुलशरीर होकर उन्हें निश्चल करके अवस्थित रह रहा था ॥ ७१ ॥ उस समय मेरी प्रियाको रोती हुई सुनकर गाँवकी स्त्रियाँ मिल करके आयीं व हजारों रोगोंकी योजना करती हुई यों बोलीं ||७२ || उनमें से एक बोली कि चूँकि दुर्गा-पार्वती आदि माताओंकी पूजा नहीं की गयी है, इसीलिए यह दोष उत्पन्न हुआ है; इसका और दूसरा कोई कारण नहीं है || ७३ ॥ दूसरी बोली कि यह दोष देवताओंका है, यह स्पष्ट है । इसके बिना इस प्रकारकी पीड़ा कैसे हो सकती है ? नहीं हो सकती || ७४ ॥ तीसरी स्त्रीने बायें हाथपर मेरे मुखको रखकर दूसरे हाथको चलाते हुए कहा कि हे माता ! यह तो कर्णसूचिका व्याधि है || ७५ || इसी प्रकारसे किसीने उसे कफजनित, किसीने पित्तजनित, किसीने वातजनित और किसीने संनिपातजनित दोष बतलाया ॥७६॥ वे सब स्त्रियाँ व्याकुल होकर इस प्रकार बोल ही रही थीं कि उसी समय एक शाबर ७५) ब वारयन्त्य ं । ७७) ब सादरश्चैव for शाबरो वैद्यो इ सावरो for शाबरो ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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