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धर्मपरीक्षा-९ एकत्रावसिते मूर्खे निगद्येति स्वमूर्खताम् । द्वितीयेनेति प्रारब्धा शंसितुं ध्वस्तबुद्धिना ॥२० एकीकृत्य समस्तानि विरूपाणि प्रजासृजा। भार्ये कृते ममाभूतां द्वे शङ्के ऽकंफलाघरे ॥२१ कपर्दकद्विजे' कृष्णे दीर्घजङ्घाघ्रिनासिके। सदृशे कंसकाराणां देव्याः शुष्ककरोरुके ॥२२ रासभी शूकरी काकी भक्षणाशौचचापलैः । ये जित्वा रेजतुनिन्धे कदन्नोद्वासितान्तिके '॥२३ वहन्ती परमां प्रीति प्रेयसी चरणं मम । एका क्षालयते वामं द्वितीया दक्षिण पुनः ॥२४ ऋक्षी खरीति संज्ञाभ्यां ताभ्यां सामनेहसि'। प्रयाति रममाणस्य लीलया सुखभोगिनः॥२५ एकदी निचिक्षेप प्रक्षाल्य प्रीतिमानसा। पादस्योपरि मे पादं प्राणेभ्यो ऽपि गरीयसी॥२६
२०) १. स्थिते सति । २. मूर्खता । ३. कथितुम् । २१) १. ओष्ठे। २२) १. कोडासदृशदन्ते । २. क नख । २३) १. कुत्सितमन्नं कदन्नं तेन उद्वासितः निराकृतो ऽन्तिमश्चाण्डालो याभ्यां ते। २५) १. दिवसानि; क काले। २६) १. मुमोच । २. अधिका मम ।
इस प्रकार अपनी मूर्खताविषयक वृत्तान्तको कहकर एक मूर्खके चुप हो जानेपर दूसरे मूर्खने अपनी मूर्खताविषयक वृत्तान्तको इस प्रकारसे कहना प्रारम्भ किया ॥२०॥ - अकौवेके फलके समान अधरोष्ठवाली जो दो स्त्रियाँ मेरे थीं उन्हें ब्रह्मदेवने समस्त कुत्सित वस्तुओंको एकत्रित करके निर्मित किया था, ऐसी मुझे शंका है-ऐसा मैं समझता हूँ।।२।। _ कौड़ीके समान दाँतोंवाली, काली तथा लम्बी जंघाओं, पाँवों और नाकसे संयुक्त वे दोनों स्त्रियाँ कँसेरों-काँसेके बर्तन बनानेवालों की देवीके समान सूखे हाथों व ऊरुओं (जाँघों) से सहित थीं ॥२२॥
कुत्सित अन्नके द्वारा चाण्डालको मात करनेवाली वे दोनों निन्दनीय स्त्रियाँ भोजन, अपवित्रता और चंचलतासे क्रमशः गधी, शूकरी और काकस्त्रीको जीतकर शोभायमान हो रही थीं ॥२३॥
___ उनमें अतिशय प्रीतिको धारण करती हुई एक प्रियतमा तो मेरे बाँयें पाँवको धोया करती थी और दूसरी दाहिने पाँवको धोया करती थी ॥२४॥
__ऋक्षी और खरी इन नामोंसे प्रसिद्ध उन दोनों स्त्रियोंके साथ लीलापूर्वक रमण करके २२) ब कपर्दकाट्टजे, ब क ड करोरुहे, इ तनूरुहे । २३) ब रेजतुर्विद्ये । २५) अ ऋषी for ऋक्षी; अब भागिनः । २६) म एक ऋषी।: