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, धर्मपरीक्षा-५ .. नारी हेतुरकीर्तीनां वल्लीनामिव मेदिनी । दुर्नयानां महाखानिस्तमसामिव यामिनी ॥५८ .. चौरीव स्वार्थतन्निष्ठा' वह्निज्वालेव तापिका। छायेव दुर्गहा योषा सन्ध्येव क्षणरागिणी ॥५९ अस्पृश्या सारमेयीवं नीचा चाटुविधायिनी। पापकर्मभवा भामा मलिनोत्सृष्टभक्षिणी ॥६० दुर्लभे रज्यते क्षिप्रमात्माधीनं विमुश्चति । साहसं कुरुते घोरं न बिभेति न लज्जते ॥६१ क्षणरोचिरिवास्थेया व्याघ्रोवामिषलालसा। मत्स्यीव चपला योषा दुर्नीतिरिव दुःखदा ॥६२
५८) १. क रात्रिः । ५९) १. स्थिता। ६०) १. कुक्कुरीव। ६२) १. क विद्युत् । २. क अस्थिरा।
जिस प्रकार बेलोंकी उत्पत्तिका कारण पृथिवी है उसी प्रकार अपयशों (बदनामी) की उत्पत्तिका कारण स्त्री है तथा जिस प्रकार रात्रि अन्धकारकी खान है उसी प्रकार स्त्री अनीतिकी खान है ।।५८॥
स्त्री चोरके समान स्वार्थको सिद्ध करनेवाली, अग्निकी ज्वालाके समान सन्तापजनक, छायाके समान ग्रहण करनेके लिए अशक्य, तथा सन्ध्याके समान क्षण-भरके लिए अनुराग करनेवाली है ।।५९॥
जिस प्रकार पापकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई नीच कुत्ती छूनेके अयोग्य, स्वामीकी खुशामद करनेवाली, और घृणित जूठनके खानेमें तत्पर होती है; उसी प्रकार पापकर्मसे होनेवाली नीच स्त्री भी स्पर्श के अयोग्य, स्वार्थसिद्धिके लिए खुशामद करनेवाली, और नीच पुरुषोंके द्वारा निक्षिप्त वीर्य आदिकी ग्राहक है ॥६०॥
वह दुर्लभ वस्तु (पुरुषादि ) में तो अनुराग करती है और अपने अधीन (सुलभ) वस्तुको शीघ्र ही छोड़ देती है। तथा वह भयानक साहस करती है, जिसके लिए न तो वह भयभीत होती है और न लज्जित भी ॥६१।।
स्त्री बिजलीके समान अस्थिर, व्याघ्रीके समान मांसकी अभिलाषा करनेवाली, मछलीके समान चंचल और दुष्ट नीतिके समान दुखदायक है ॥६२।।
६०) ब भावा for भामा। ६१) इ रम्यते.... मात्मानं च वि; ब सहसा कुरुते । ६२) ब क रिवास्थेष्टा; ड'रिव दोषदाः ।