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अमितगतिविरचिता
बहुनात्र किमुक्तेन महत्तर निबुध्यताम् । प्रत्यक्षवैरिणी गेहे कुरङ्गी तव तिष्ठति ॥ ६३ विटेभ्यो निखिलं द्रव्यं तव दत्त्वा विनाशितम् । कुरङ्ग्या पापया भद्र चारित्रमिव दुर्लभम् ॥६४ तव या हरते द्रव्यं निर्भयीभूतमानसा । हरन्ती वार्यते केन जीवितं सा दुराशया ॥६५ स्खलनं कुरुते पुंसामुपानदिव निश्चितम् । अयन्त्रिता सती रामा सद्यो ऽमार्गानुसारिणी ॥६६ यो विश्वसिति रामाणां मूढो निघूणचेतसाम् । बुभुक्षातुरदेहानां व्यालीनां विश्वसित्यसौ ॥६७ भुजङ्गी तस्करी व्याली राक्षसी शाकिनी गृहे । वसन्ती वनिता दुष्टा दत्ते प्राणविपर्ययम् ॥६८
६६) १. क चञ्चलम् । २. न यन्त्रिता । ६७) १. निर्दयमनसाम् ।
प्राकू ! बहुत कहने से क्या लाभ है ? वह कुरंगी तुम्हारे घरमें साक्षात् शत्रुके समान अवस्थित है || ६३ ॥
भद्र ! उस पापिष्ठा कुरंगीने दुर्लभ चारित्रके समान तुम्हारा सब धन भी जार पुरुषों को देकर नष्ट कर डाला है ॥६४॥
जो कुरंगी मनमें किसी प्रकारका भय न करके तुम्हारे धनका अपहरण कर सकती है. वह दुष्टा यदि तुम्हारे प्राणोंका अपहरण करती है तो उसे कौन रोक सकता है ? ||६५ ||
स्त्री यदि नियन्त्रणसे रहित ( स्वतन्त्र ) हो तो वह जूतीके समान कुमार्ग में प्रवृत्त होकर निश्चयतः शीघ्र ही पुरुषोंको मार्गसे भ्रष्ट कर देती है ॥ ६६ ॥
जो मूर्ख भूखसे पीड़ित शरीरसे सहित और मनमें क्रूरताको धारण करने वाली स्त्रियोंका विश्वास करता है वह भूखसे व्याकुल क्रूर सर्पिणियोंका विश्वास करता है, ऐसा समझना चाहिए ॥६७॥
सर्पिणी, चोर स्त्री, श्वापदी ( हिंस्र स्त्री पशुविशेष), राक्षसी और शाकिनी के समान घर के भीतर निवास करनेवाली दुष्ट स्त्री मरणको देती है - प्राणोंका अपहरण करती है ॥६८॥
६३) ब विबुध्यताम्, क ड विमुच्यतां । ६४) ब चरित्रमिव । ६६) ड इ सद्योन्मार्गा' । ६७) अ क ड विश्वसति .... विश्वसत्यसौ ।