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________________ धर्मपरीक्षा-५ स श्रुत्वा वचनं तस्या मूकोभूय व्यवस्थितः। संकोचितसमस्ताङ्गो बिडाल्या इव मूषकः ॥२३ सुखेन शक्यते सोढुं कुलिशाग्निशिखावली। न च वक्रीकृता दृष्टि र्या भृकुटिभीषणा ॥२४ आलापिता' खला पुंसा संकोचितभुजद्वया। क्रुधा पूत्कुरुते रामा सर्पिणीव महाविषा ॥२५ ईदृश्यः सन्ति दुःशीला महेलाः पापतः सदा। पुंसां पीडाविधायिन्यो दुनिवारा रुजा इव ॥२६ आगच्छ भुक्ष्व तातेति तनूजेनत्ये सादरम् । आकारितोऽप्यसौ मूकश्चिन्तावस्थ इव स्थितः ॥२७ पाखण्डं किं त्वयारब्धं खाद याहि प्रियागृहम् । तयेत्युक्तो गतो भीतः स सुन्दर्या निकेतनम् ॥२८ २५) १. आकारिता सती। २७) १. त्वम् । २. क आगत्य । ३. आहूतः । जिस प्रकार चूहा बिल्लीसे भयभीत होकर अपने सब अंगोपांगोंको संकुचित करता हुआ स्थित होता है उसी प्रकार वह बहुधान्यक कुरंगीके इन वचनोंको सुनकर अपने समस्त शरीरके अवयवोंको संकुचित करता हुआ चुपचाप स्थित रहा ॥२३॥ मनुष्य वन एवं अग्निकी ज्वालाओंको सुखपूर्वक सह सकता है, किन्तु स्त्रीकी भृकुटियोंसे भयंकर कुटिल दृष्टिको नहीं सह सकता है ॥२४॥ बुलायी गयी दुष्ट स्त्री महाविषैली सर्पिणीके समान क्रोधित होकर दोनों भुजाओंको संकुचित करती हुई पुरुषोंको फुकार मारती है ॥२५॥ ... पापके उदयसे उत्पन्न हुई इस प्रकारकी दुष्ट स्वभाववाली महिलाएँ असाध्य रोगके समान पुरुषोंको निरन्तर कष्ट दिया करती हैं ॥२६॥ - हे पिताजी ! आओ भोजन करो, इस प्रकार पुत्रके द्वारा आकर आदर पूर्वक बुलाये जानेपर भी वह बहुधान्यक चुपचाप इस प्रकार बैठा रहा जैसे मानो वह चित्रलिखित ही हो ॥२७॥ ___अरे पाखण्डी ! तूने यह क्या ढोंग प्रारम्भ किया है ? जा, अपनी प्रियाके घरपर खा । इस प्रकार कुरंगीके कहनेपर वह भयभीत होकर सुन्दरीके घर गया ॥२८॥ २३) इ बिडालादिव । २४) अ ब न तु । २५) अ पुंसां; अ ब इ क्रुद्धा; ब क फूत्कुरुते। महिला, क महिलाः । २७) अ इ तनुजे'; अचित्रावस्थ। २६) ब ड
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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