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________________ ७४ अमितगतिविरचिता तथा विचिन्त्य जल्पन्ति विलयाः कुटिलाशयाः। ह्रियते भ्राम्यते चेतो यथा ज्ञानवतामपि ॥१८ क्रोधे मानमवज्ञा स्त्री माने जानाति तत्त्वतः। सम्यकर्तुमवज्ञायां स्थिरतां परदुष्कराम् ॥१९ योषया वज्यंते नीचो नरो रक्तो यथा यथा। तस्यास्तथा तथा याति मण्डूक' इव संमुखम् ॥२० कषाययति सा रक्तं विचित्राश्चर्यकारिणी। कषायितं पुनः पुंसां सद्यो रञ्जयते मनः॥२१ प्रेम्णो विघटने शक्ता रामा संघटते पुनः। योजयित्वा महातापमयस्कार इवायसम्॥२२ १८) १. स्त्रियः । २. कुटिलचित्ताः। १९) १. अपमानम् । २०) १. क मीडका इव। २१) १. कषायिनं करोति। २२) १. लोहस्य। - अन्तरंगमें दुष्ट अभिप्राय रखनेवाली स्त्रियाँ इस प्रकारसे विचार करके बोलती हैं कि जिससे जानकार पुरुषोंका भी चित्त भ्रान्तिको प्राप्त होकर हरा जाता है ॥१८॥ स्त्री क्रोधके अवसरपर मान करना जानती है। मानके समय (दूसरोंका) अपमान करना जानती है। और जब स्वयं स्त्रीका अपमान दूसरोंसे होता है, तब वह अच्छी तरहसे स्तब्ध रह सकती है कि जो स्तब्धता अन्य कोई नहीं पाल सकेगा ॥१९॥ ____ स्त्री नीच रक्त पुरुषको जैसे-जैसे रोकती है वैसे-वैसे वह मेंढककी तरह उसके सन्मुख जाता है।॥२०॥ ... विचित्र आश्चर्यको करनेवाली स्त्री रक्त पुरुषको कषाय सहित करती है और तत्पश्चात् कषाय सहित पुरुषोंके मनको शीघ्र ही अनुरंजायमान करती है ॥२१॥ जिस प्रकार लुहार महातापकी योजना करके-अग्निमें अतिशय तपाकर-लोहेको तोड़ता है और उसे जोड़ता भी है उसी प्रकार स्त्री प्रेमके नष्ट करनेमें समर्थ होकर उसे फिरसे जोड़ भी लेती है ॥२२॥ १८) अ भाव्यते चेतो....ज्ञातवता । १९) व इ क्रोध; अ स्वां मनो for स्त्री माने, क स्वमनो। :२०).अ यथाथवा। २१) अ कषायितुं, ड कषायिना, इ कषायिता; इ पुंसो। २२) ब प्राप्ता विघटते; कड इ संघटने; क ड इवायसः ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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