________________
अमर-दानव-मानव-सेविता, जगति जाड्यहरा श्रुतदेवता..। विशद-पक्ष-विहंगविहारिणी, हस्तु मे दुरितानि सरस्वती प्रवर-पंडित-पुरुष-पूजिता, प्रवर-कान्ति-विभूषण राजिता.... प्रवर-देह-विभाभर-मंडिता, हरतु मे दुरितानि सरस्वती
।। २ ।।
।। ३ ।।
१. ॐ ऐं नमः १२ वणत सामुहि भप. २. ॐ क्लीं शारदायै नमः
३. ॐ अर्हन् मुखकमलवासिनि...! पापात्म क्षयंकरि श्रुतज्ञानज्वाला सहस्त्र प्रज्वलिते...! सरस्वति...! मत्यापं... हन हन दह दह क्षां क्षीं क्षं क्षौं क्षः क्षीरधवले...! अमृत संभवे ! वं वं हूं हूं वीँ ह्रीँ क्लीँ हसौं वद वद वाग्वादिन्यै ह्रीँ स्वाहा ... ।
ॐ ह्रीँ श्रीँ श्री जिनशासन शोभनायै श्री तीर्थंकर मुखांभोज वासिनी द्वादशांगी अधिष्ठायित्री श्री सरस्वती महादेव्यै जलं चंदनं ... અષ્ટપ્રકારી પૂજા रवी.
षोडश पूजा नमोऽर्हत्ο.. (राग - सरसशांति सुधारस ) सकल-शीत-मरिचि समानना..., विहित-सेवक - बुद्धि विकाशना...। धृत-कमंडलु-पुस्तक मालिका..., हरतु मे दुरितानि सरस्वती.... ।। ४ ।।
૪૫