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________________ आगम (४५) "अनुयोगद्वार"- चूलिकासूत्र-२ (चूर्णि:) ...................मूलं [१४१-१४६] / गाथा ||११२-१२१|| ... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र- [४५], चूलिकासूत्र- [०२] "अनुयोगद्वार" चूर्णि: प्रत सूत्रांक [१४१ अनुयाग यमान १४६] गाथा ॥६५॥ ||११२ १२९|| | अर्णताहि उस्सप्पिणीहि खेत्ततो अणता दोवि पूर्ववत, दबतो सब्बजीवेहि अणंतगुणा जीवघग्गस्स अणंतभागो, कहं ?, सच्चजीवानार | अणतगुणा जाति ताइ तेयाकम्माई होज्जा, आह-एत्तियं ण पावति. किं कारणं , तेयाकम्माई तहेवणंतभेदभिण्णाई असं-12 खेज्जकालावत्थाई जीवहिंतो अर्णतगुणाई भवंति?, केण पुणाणतएण गुणाई, तं चैव जीवाणतयं तेण जीवाणतएण गुणितं जीव-1 वग्गो भण्णति, एतिया य होज्जा, आह-एत्तियं ण पायति, किं कारणं, असंखेज्जकालावस्थाइत्तणतो तेसि दव्वाणं, तो कित्तियाई पुण होज्जा ?, जीववग्गस्स अणंतभागो, कहं पुण तदेवं घेत्तव्वं , आयरिय आह-ठवणारासीहि, णिदरिसणं कीरइ, सब्बजीवा दससहस्साई बुद्धिए घेप्पति, तेसि वग्गे दसकोडांतो होंति, सरीराई पुण दससतसहस्साई बुद्धीए अवधारिजति, एवं किं जाय, सरीरयाई जीवहितो सतगुणाई जाताई, जीवबग्गस्स सतभागे संयुत्ताई, णिदरिसणमे, इहरहा सम्भावतो एते तिण्णिवि रासी अनंता दगुम्बा, एवं कम्मयाइपि, तस्स सहभावितणओतत्तल्लसंखाई भवंति, एवं ओहियाई पंच सरीराई भणिताई ।।४ मेरइयाण मंते !' इत्यादि. विससिय णारगाणं वेउव्वगा बद्धेल्लया जावइया एव णारगा, ते पुण असंखेज्जा असंखज्जाहि उस्स| प्पिणीहि कालप्पमाणं, खेत्तओ असंखज्जाओ सेढीओ, तासि पदेसमित्ता णारगा, आह--पयरंमि असंखज्जाओ सेढीओ?, आयरिय आह-सयलपयरसेढीओ ताव न भवंति, जदि होतिओ एवं चेव भण्णंति, आह--तो ताओ कि देखणपयरवत्तिणीओ होज्जा', तिभागचउभागवतिणीओ होज्जा, भण्णति, जो अणं सेढीओ पतरस्स असंखेजतिभागो, एयं विससियरं परिसंखाणं कर्य, होति, अहवा इदमण्यं विसेसिततर विक्वंभराईए एएसि संखरणं भष्णइ, 'तासि णं सेढीणं विक्खंभमइ अंगुलपढमवग्गमूल वितियवग्गमूलेण पदुप्पाइयं तावइयं जाव असंखेजाइ समितस्स ' अंगुलविक्खंभखेतवत्तिणो सेढीरासिस्स जं पढमं वग्गमूलं तं वितिएण दीप अनुक्रम [२९२ ३१४] ~69~
SR No.006208
Book TitleAagam 45 Anugdwaar Sutra Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages97
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size8 MB
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