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________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति: [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 2 प्रत्याख्यान चूर्णिः CASS प्रत शिक HEIG ॥३०॥ सूत्र सायणादिसु, उल्लंघणमाति वा करेज्जा, ण वट्टति सामातियस्स, सतिअकरणया नाम अब करेति, अहवाण जाणति-किं सामा-18/ देशावकातियं कयं ण कयं यत्ति, एवं विभासा, सामातियस्स अणपट्टियस्स करणया णाम सामातियं काऊणं पुणो तक्षणं चेव पारंतोल चेव चच्चति, ण पट्टति एवं, जदि चिरं अच्छति तो करति, अहया सव्यं वावार काऊण जाधे खणितो ताहे करेति तो से ण भज्जति, एवं विभासा । धन्ना जीवेसु दयं करेंति धन्ना मुदिट्टपरमत्था । जावज्जीव व दयं करेंति एवं च चिंतेज्जा ॥१॥ कतिया णु अहं दिक्खं जावज्जीवं जहडिओ समणो । णिस्संगो विहरिस्सं एवं च मणेण चिंतेज्जा ॥२॥ देसावगासियं नाम देशे अवकाशं ददातीति, पूर्व दिक्खु तं बहूणि जोयणाणि आसि, दाणि दिवसे दिवसे ओसारेति गाजत्तियं जाहिहिति, राति तंपि उबारेति दिसं उबक्कमति, एत्थ दिट्ठीविससप्पदिट्ठतो, पुष्यं तस्स बारस जोयणाणि दिडीए 8 विसतो आसि, पच्छा तेण विज्जावातिएणं ओसारितो जोयणे उवितो, एवं सावओ दिसिब्बए बहुयं अवरझियातितो पच्छा देसावगासिएणं तंपि ओसारेति, अहवा बिसदिहूँतो, अगदेणं एगाए अंगुलीए ठवियं विभासा । एवं सापोऽवि आवकहियातो दिसिव्वयातो दिणे दिणे ओसारेति जाव अज्ज घरातो ण णामि गामणगरउज्जाणातो, अह जातितुकामो होति सो भणति-14 अज्ज पुरत्थिमेणं जोयणं दो तिथि जत्तिए वा जोयणे गंतुकामो, अण्णतरएणं दिबसेण तस्स आकारं करेति, किंचिमित्तविराह ओचि सेसाणं अविराहो, अण्णे भणति-एवं वएसु जे पमाणा ठविता ते पुणो दिवसे ओसारेति, एवं-गगमुहुनं दिवसं राति ॥३०॥ हापंचाहमव पक्ष था । वतमिह धारेउ दर्द जावतियं तुच्छहे कालं ॥१॥ पुढविदगअगाणमारुयषणस्सती तहा। मातसेसु पाणसु। आरंभमेगसो सब्यसोय सत्ती बज्जेज्जा ।। २॥ण भणेज्ज रागदीसेहिं दूसितं णवि गिह दीप अनुक्रम [६३-९२] RESCkCOMCHECREAM (308)
SR No.006204
Book TitleAagam 40 Aavashyak Choorni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages332
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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