________________
आगम (०१)
“आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [३], नियुक्ति: [१०६-११५], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १८-३०]
श्रीभाचारांग सूत्र
चूर्णिः ॥२६॥
प्रत
वृत्यक
[१८-३०]
अहवा संका विसोतिया, कि आउकाओ जीवो ण जीवोति,वं तिण्णो कई बद्धमाणपरिणामो भणियब्बो', भण्णइ
'पणता वीरा महाविहि' (२१-४३) मिस णता पणता अमिमुहीहुया मोक्खस्स बीथी-रत्था वा मग्गो वा एगढ़ा, दग्वे | तअंतरावणविद्दी गोविही सुंकविही, भावविही महती पत्रणा वा वीथी महावीथी, मोक्खमग्गस्स, अतिथि कईचि पमायखलितेण
ण बडुमाणपरिणामो भवति तहावि लहु पडियुझिचा पुणरवि तिब्बतरपरिणामो भवति, किंच 'लोयं वा आणाए अ-1 मिसमिचा' (२२-४४) लोयंति जीवलोय आउलोपं वा, आणाए भगवतो उपदेसो, जेवि पञ्चखनाणिणो तेहिंबि पुग्वं | आणाए अधिगता, अभिमुहं पच्छा अभिसमेजा, अहवा दिळतेहिं कहिजमाणमवि आउक्कापलोगं एगिदियलोग वा कोई मंदबुद्धी Nण सदहति तं पहुच इर्म भण्णइ-'लोयं वा आणाए अमिसमेचा अकृतोमयं तिण कुतोऽवि जस्स भयं ते अकुत्रोभयं, अहवा ण 2 कयाइवि भयं करेइ आउकायस्स, तस्य भयं दुखं असातं मरणं असंति अणस्थाणमिति एगट्ठा, जो एवं तेण भण्णा 'से बेमि
णेव सयं लोय' अम्माइक्खिज, न इति प्रतिवेघे सयं अम्भाइक्खा जहा एगिदिया अजीवा, अत्ताणं जो अन्नं वा संतं अबहा ॥ भणति जहा साहुं असाहुंति एवमादि, एवं जो पगिदिए जीवे उवगरणदु(प)पाय भणति तेण अम्भक्खातं भवति, अहयाऽऽउलोगो अविकितो 'त'ति पिजहाए ण अभाइक्सति, नेव सयं अचाणं अम्भाइक्वेजा, अलातचक्कदिढतादीहिं अपाणं अम्मा-1 इक्खइ जहा अहमवि नत्थि तेण छजीवकायलोगो अप्पा य ण अत्थीति बत्तव्य, इमं अमंगररागइलक्षणं 'जो एगिदियकायलोयं अम्भक्खाइ सो अप्पाणं अन्माइक्खइ, जस्स एदियलोगो गत्थि तस्स अपाधि णत्वि, जो वा अधि केयं आउलोगं अम्भाइक्खा सो अपाणं अभक्लाइ, कई १, तस्स अप्पा अणंतसो तत्य उववमपुष्पो, यदि सो णस्थि अप्पावि णस्थि, के पुण|DDIN२६॥
दीप अनुक्रम [१९-३१]
A
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[30]