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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [३], नियुक्ति: [१०६-११५], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १८-३०]
प्रत
वृत्यक
[१८-३०]
श्रीआचा-Dलोगं अन्माइसंति ,जे अहपरिजुण्णो दुस्संधो वा आउरा परिताविता, सीसो भणइ-भगवं! आउकाओ अश्वत्थं दुग्गेझो अका रांग सूत्र-ICण सुणेति ण पासति णग्याति ण रसं वेदेति ण सुहृदुक्खं दीसंति वेदेता ण चलणं ण फंदणं णावि उस्सासो णिस्सासो वा दिस्सइ,
| स कहं जीयो, एत्थ दिढुंतो 'जह हथिस्स सरीरं' गाहा (११०-४०) जंच णिज्जुत्तीए आउक्कायजीपलक्खणं जं चYAL ॥२७॥
अजगोबिंदेहि भणियं गाहा, आयरिएहिं सीसो परियच्छावेयनो, आणाए य सदहणा, आउक्काइए जीवे जो ण सदहन | सो मिच्छादिट्ठी अणगारत्तणं तस्स कतो?,'लज्जमाणा पुढो पास' एस आदत्तं पुढविक्काइयउद्देसयगमेणं धुपगंडिया सुचत्यतो माणियथ्या, अप्पेगे अंधमझे जाव संपमारे य पच्या 'से बेमि संति पाणा उदगणिस्सिता(२४-४५) से इति णिदेसे सोऽहं बेमि 'संति' विजंति पायसो उदए सबलोए पतीता पूतरगादि तसा विअंति तदस्सिता, ण उदगं जीवा जदा सक्काणं, अण्णेसि णवि उदगं जीवा णवि अस्सिता जीवा जे पूतरगादि, ते खिसंभवा ण आउक्कायसंभषा, 'इह च खलु भो अणगाराणं' 'इहे'ति इमंमि पवयणे च समुच्चये, खलु विसेसणे, किं विसेसयति ?-णायपुत्तसिस्साणं अणगाराणं,ण अण्णेसि, उदयजीवे वियाहिते, घसदो उदगणिस्सिता य पूतरगादि, ते ण खेत्तसंभवा, एत्थ भंगा-कत्थइ उदगं तसावि, कत्थर उदगंनो | | तसा, कत्था उदगं निज्जीचं तसा, कत्थइ उदगंपि निज्जीवं तसावि णस्थि, सो पुण आउक्काओ तिविहो, तंजहा-सचित्तो अपित्तो | मीसओ, कई अचिचो भवति ?-'सत्थं चेत्थ अणुवीइ पास' तंजहा 'उस्सिचणाय पाणे गाहा (११३-४१) किंची सकायसत्थं' (११४-४२) अहवा वण्णरसगंधफासा सस्थ, वण्ण भो उण्दोदगं अग्गिपुग्गलागतं इसित्ति कविलं भवति गंधतो धूम-10 |गंधि य, जत्थ गंधो तत्थ रसोवि विरस चा रसएणं, फरिसओ उण्इं, किंचि उण्डभूपिन अचेयणं जहा अणुनचो दंडो, सभावेण | 1॥२७11
दीप अनुक्रम [१९-३१]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चर्णि:
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