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आगम
“आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [२], नियुक्ति: [६८-१०५], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १३-१७]
काभाना
प्रत
वृत्यंक
GAR
[१३-१७]
दीप अनुक्रम [१३-१८]
गंगभूत्र
182 ममुरादाण व्हमा अमार्ण हमति पापा भुजति सबमाशाह, यायिय ओ वा अलखलाभओ पर पविभनो लजति, लोउचरे !! लम्बा चणिः Hit संजम एक्ला , भाग चला दया संजमी बभन" असंजम कार्ड लज्जति, पूढीणाम पनेय २, पास पचकखाणा
वाचवाधा पृढवि समारभंना लज्जनि. अहया ने लाजमार्ग पामादि, कृतित्थिा पुष लजणिज्जेवि विणिहयामा अहिए परिजुण्णे दुस्संचोधे ।
२ उद्देश: अवियाणा पनयं करिमामाहागीकारगार कलियकोदालादीहि सत्यहि समाग्भनि, 'अजगारनि अगा-रुकवा नेहि कयं | अगार, अगार में णन्थि नेण अणगारा, दग्वे चस्यादि, मावे अणगाय माह, ने सीलंगमहम्मरकरवणट्टा पृढविण समारमंति. इतरे। पुणनिधि निमट्टा पायापमया 'पचति य अणमाग माहा."-:)लोपण अणगारा भण्णमामा, भयंती पूया-m सक्कार हे पण पायति 'अणगारवादिगो पुद विहि गाहा । १०.३३ ) मलिणना अपाणं कति, पृढविममारंभावरण । दुगुंडमाया, जहा मालणं अन्य कामोदएण पृनमाण, पर्व न ज ने दोति तं व करति महबोहोवा, जहा एककमि गामे सुइ-1
चोही सम्म मामम्म एम गिह कणता दिापनि ती उमट्ठीप माझ्याहिम जहाति, अण्णादायम गिहे पलही मला, कम्मा२५ णिस्य, नेश मणियं-संधि मनीणेध, संच ठाणं पाणिणं यावद, निफडिए चंडाला उद्विना विगिचियं कुज्ज, हि । कम्मवराह मुहरबाही पुजिओ. चंडाला दिज १, नण वृतं मा, किंतु किस्खु किखु किम्युनि भणति, बिकिंचतु मयं, एवमेव मंसं दामयमा देश, चम्मेण वदयाउ वह निगाणि उच्छुबाडमध्ये कीरहित्ति डोपि वन भविस्मइ, अविदिवि भी कजिहिनि नउमाण, पहारमा मन्थकंडाणं भविस्स एवं तणवि जहा परिवत्त एवं अपतित्थियाचि तं व सेंति तं चेव करेंति, मामीता पक्ष्यात पेव करेंनि हिंसं. दरसोयरिया चउमट्टि महियादि को करति, विचावि गामादिपरिगहो, हलक- ॥२१॥
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चर्णि:
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