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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [९], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-६७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-१२]
श्रीआचा- रांग सूत्र
चूर्णिः ॥१५॥
प्रत
वृत्यंक
[१-१२]
णाणि सविताणि, अणागतग्गहणा एस्साणि, एतावंति सब्यावंति' एत्तिओ पंधविसओ, अद्दवा उडुमहतिरिय सम्वावंति, योनिस आहवा एतिय पंध, एतेति तिस्थगरवयणं, तंजहा अकरेंसु वऽहं करेमि वऽहं करिस्सामि वऽहं 'लोयंसि कम्मसमारंभा' पच्चक्षतरंमि लोए-जीवलोए दुबिहाए परिणाए परिजाणियव्या, अपरिणायकम्मस्स के दोसा, भकति 'परिषणायकम्मे खलु अयं पुरिसे' (८-२३) पुनो सुहदुक्खाणं पुरिसो पुरि सयणा वा पुरिसो, सर्व सपाणुस्स प्रत्यक्षमितिकाउं तेण भण्णति-अयं पुरिसो. अहवा जो विवक्षितो असंतपुरिसो तं पडुच्च भण्णति-अपरिणाय०, अयं पुरिसो दिसाओ भावदिसाओ य अट्ठारस, पावगं पहप छदिसानो सेसा सन्चाओ अणुदिमाओ, पूणरुचारणं ण हि काति दिसा अणुदिसा वा वियते जत्थ सो णो संसरति, 'साहेति' सह कम्मणा, स किं तेणेच अपरिण्णायदोसेणं 'अणेगरूवाओ जोणीओ संभवंति' अणे-IN गरूबा णाम चउरासीइजोणिप्पमुहमयसहस्सा, अहवा सुभासुभाओ अणेगळंबाओ, तत्थ सुभा देवगतिअसंखेजवासाउयमणुस्स-1 राईसरमाईभाओ गोनेवि जातीसंपण्णाति, सेसाओ अणिड्डाभो, अहवा देवेमुवि अभियोगकिचिसियाति, असुभा तिरिएसुधि । | गंधहस्थी अस्सरतणाणि सुभाओ, पगिदिएसुऽवि जत्थ वष्णगंधफामा इट्ठा कंता, स सम्मं सुभानुभकम्मेहिं धावति संधावति, सम्बओ
एगो वा धावति संधापति, संधेति वा पटिअति, तत्थ संधणा दग्ये भावे य, दव्वे छिन्नसंधणा य अच्छिन्नसंधणा य, तत्थ छिन्न| संधणा दसियाहिं वागा वागेहि या रज्जू, अच्छिणा बलूतो मुतं वहिजति, भावेवि दुविहा, छिण्णा जो उवसामगसेढीपडिवडतो | पुणरवि उदइयं भाव संधति सा छिष्णसंधणा, अच्छिष्णा मो व उपरि दंतादिविसुज्झमाणपरिमाणो अपुब्बाई संजमट्ठाणाईD m संघेति, एवं खाएवि, नस्स पृण पडिवातो णस्थि, अहवा संदधाति अहवा संधारयति, एता जोणी संधावतस्स को दोसो ?, भण्णति- ॥१५॥
दीप अनुक्रम [१-१२]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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