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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [४], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२२७...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १२६-१२९]
प्रत
वृत्यक
[१२६१२९]
श्रीआचा-10
|| वसित्ता ‘पलेमाणा' विमुच्चमाणा पुढो पुढो जाई पगप्पंति-पिहप्पिहं अयंगाओ गतिओ गच्छंति, सकम्मेण पिहप्पिहा जातीयो| | पलायनादि रांग सूत्र
कप्पति-पकुब्बंति, जह सउणगणा बहवे समागता पादये नि वसिऊण किंचि कालं पगि जात्र पुणो पत्रअंति, पुणो पुणो पुणो वा चूर्णिः जाति जहा-एगिदियजाई जाव पंचिंदियजाई, अणंतसंसारं, पम चदोसा भणिता, तन्भया 'अहो य रातोय अविस्सा जताहि
अवता ॥१३७॥ घडाहि, एवं अवधारणे, जम्हा एते पमत्तदोसा तम्हा जत, वीरो भणितो आयपरउवदेसओ'सता आगतं' णिचं आगतं पण्णाणं
जस्स खगलबपडिबुन्झयणा णिचं अप्पमाएण उवउत्तो 'पमत्ते यहिता पास' जे बिसयकमायपमत्ता असंजया गिहत्था अन्नउत्थिया चहिया धर्ममते ! एवं पस्स, 'अप्पमचे सता परकमेआसित्ति बेमि। कहं णाम रागादिदोसेसु लछणा ण होआ ?, पराण परक्कमे, एत्थ तेल्लथालपुरिसेण दिढतो, जहा सो अप्पमायगुणा मरणं ण पत्तो एवं साहूवि सिझिस्सइ, चउत्थायणस्त | पढ़मो उद्देसओ सम्मत्तो ४-१॥
उद्देसत्याधिगारो निज्जुनीए चुत्तो, मुत्तस्स सुसेण सम्मत्वे अहिंसाइलक्खणे वतिरिचे सचरिते अपमादो कायब्बो, अहवा. 'अप्पमत्ते परकमिआसित्ति बेमि' पमत्तो य आसवति, अण्णहा णिस्सयतीति, अतो पुच्छा जे आसवगा ते परिसवगा?" अहवा सम्मत् अधिकितं, तं तु भृतत्थेण अमिगतो जीवपदस्थो पढमे अज्झयणे वण्णिओ, इह आसयो बभिजइ निजरा य, आसवरगहणा | य पुण्णं पावं बंधो य सइओ भवति, निजरगहणा य मोक्खो य, जओ मण्णति-'जे आसवा ते परिसवा' गतिपञ्चागतिलस्खणं,
दव्यासवो नदीसरादी भासबो कम्म, दवपरिसवो चालणी शरणाणि, भावपरिसबो कम्मखवणा, एत्थ दुविहा पुच्छा-अणुयोगIN| पुच्छा अणणुओगपुच्छा य, अणणुयोगपुच्छा ताव जे चेव आसवा ते चेय परिस्सवा, का भावणा, जे व आसवा हिंसाति
दीप
अनुक्रम [१३९१४२]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: चतुर्थ-अध्ययने द्वितीय-उद्देशक: 'धर्मप्रवादी-परीक्षा' आरब्धः,
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