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आगम
(०१)
प्रत
वृत्यंक
[१२६
१२९]
दीप अनुक्रम
[१३९
१४२]
श्रीआचा रांग सूत्र
वर्णिः
॥१३३॥
"आचार" - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:)
श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [४], उद्देशक [१], निर्युक्ति: [२२७...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १२६-१२९]
तावसो, पच्छा रक्तपडिओ, मालाविहारो जत्थ णिवं मल्लं कीरति, आरहतो पुण गागतोचि, रण्या पुच्छितो अमञ्चो भइ-गविसिस्सामि, मेण पुरिसा संदिट्ठा, तेहि य चेल्लओ भिक्खायरिये दोसीणस्स हिंडमाणो दद गहितो, पायओ य से अक्खाओ, सो मणड़'स्वतस्स दंतस्स जिइंदियस्म' गाहा ( २३१-१०८ ) भिण्णो पातउत्ति, धूललक्खेणं वालेण एतं रण्णाऽभिसद हितो, पच्छा रण्णा बुच्चति देहिहितं मम खुट्टया धम्मं कहेह, तेण य चेडरूवत्तणेण दोनि चिक्खडगोलया पुब्बगहिता, सो ते कुडे आवडेऊग पुणो संठितो, रण्णा पुच्छितो भणातु, एसेव धम्मो कहिओ। 'उल्लो सुको य' गाहा (२३२ - १८८) 'एवं लग्गंति' गाहा (२३३-१८८) गया सावओ जाओ, अहवा खुट्टओ गतो चेव, रोहगुतो भगड़-सब्बे एते भगन्ति-ण अम्हं न चट्टति पुलोएउं, किंतु वक्लेषदोसा ण णिदिनि, एगो मणइ भिक्खालोमेण, एगो भणति चेडरूवत्रक्खेवेणं, अण्णो भण्णति-बिहारपूयावक्खेवेणं, तेण ते सच्चे अवीयरागा, जो पुण भणति खंतस्स दंतस्स जिइदियस्स एसो वीयरागमभ्गे ठितो, एयस्स मोक्लो अस्थि, दिहंतो दोहिं गोल एहिं सुक्खेण उल्लेण 'सुक्खो उले य' गाहा ।। सुत्तागमे सुतमुचारयन्, 'से बेमि जे अईया' से विदेसे सगारस्स आएमा तं बेमि, तमिति सम्मतं, अहवा एकेको गणहरो सीसेहिं उवासिजमाणो तं वेमि सम्मत्तं, जं णिक्खेवणिज्जुचीए वृत्तं तं बेमि, 'जे य अतीता' 'जे' इति अणुदिट्ठस्स महणं, अतीतद्वाए अनंता अतीता, जे इति पप्पा पंचसु भरहेसु पंचसु एवएस पंच महाविदेहेसु, जहिं काले भवा वा तहिं काले पनरससु कम्मभूमीसु, अस्थि तित्थगरा अणागता, अणागतद्वार अनंता, सच्चे अपरिसेसा एवमाइक्खति, बट्टमाणग्गहणेण अतीतानागतावि सूचिता काला, अतीते एवमाइक्सु अणागए एवमाइक्खिस्संति जात्र पण्णवेस्संति, मध्ये य जाव सच्चे अपरिसेसिता जम्हा आणवंति वा, जात्र जम्हा सुभासुभेसु कम्मेसुण ईत
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[०१], अंग सूत्र [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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आद्र शुष्कगोलकादि
॥१३३॥